२०१. बच्चों को मोटा है बनाती, आँख नशाती दाँत सड़ाती ।
खाद्य वस्तु का नाम बताओ, बच्चों को न कभी खिलाओ।।
उत्तर—चॉकलेट ।
२०२. हड्डी से है जिसे बनाया, दाँतों में फिर उसे लगाया। उस पदार्थ का नाम बताओ, सुबह—सुबह क्यों पाप कमाओ।। उत्तर—टूथ पेस्ट— कोलगेट , सिबाका।
२०३. नाभिराय के पुत्र कहाय, तीर्थंकर का पद है पाय। कब और कहाँ से मोक्ष है पाया, सही—सही बतलाओ भाया।। उत्तर— प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान माघ कृष्ण चौदस कैलाश पर्वत से।
२०४. मुनि सात सौ ज्ञानी ध्यानी, बाली ने बदले की ठानी। झट उपसर्ग दूर है कीना, मुनिवर का शुभनाम कहो ना।। उत्तर— मुनि विष्णुकुमार ।
२०५. जीवन को है शीघ्र नशाती, मूर्ख मनुज के काम है आती। लम्बी—लम्बी जिसकी काया, नाम बताओ मेरे भाया।। उत्तर— सिगरेट , बीडी। २०६. शक्कर चर्बी से है बनाया, गोंद दवा भी जिसमें मिलाया। खाद्य वस्तु का नाम बताओ, प्राण जाएँ पर कभी न खाओ।। उत्तर— आइस्क्रीम [डब्बा बंद]।
२०७. पशु झिल्ली से जिसे है पाया, तथा जिलेटिन से है बनाया। खाद्य वस्तु का नाम बताओ, प्राण जाएँ पर कभी न खाओ।। उत्तर— कैप्सूल ।
२०८. सदा जीव उत्पन्न है होते, प्राणी की क्यों लाश है ढोते। कभी न इससे तन को सजाना, व्यर्थ में क्यूं है पाप कमाना।। उत्तर— चमडे की बनी वस्तुएँ।
२०९. चतुर्दशी का पर्व है आया, दशलक्षण भी हमने मनाया। आज कौन में मोक्ष पधारे, तीर्थंकर जो हमको प्यारे।। उत्तर—श्री वासुपूज्य भगवान।
२१०. देखो सबका मान गलाया, सम्यक दृष्टि शीश नवाया।। कृति का सुन्दर नाम बताओं, जिनमन्दिर के सामने पाओ।। उत्तर— मानस्तम्भ।
२११. जिनशासन का गौरव गाता, मन्दिर की पहचान कराता ।
दूर से जिसको शीश नमावें, कृति का सुन्दर नाम बतावें।।
उत्तर— मन्दिर जी का शिखर।
२१२. जिन प्रतिमा पर जल की धारा, नित प्रति करना हमें सहारा। कार्य कौन सा है कहलाता, श्रावक का कर्तव्य कहाता।। उत्तर— जिन प्रतिमाभिषेक (अभिषेक)।
२१३. ऋषभदेव ने ज्ञान कराया, वंश कौन सा हमें बताया। कौन—कौन से तीन बताए, नाम बताकर इनाम पाए।। उत्तर— ऋषभदेव ने तीन वंश की स्थापना की । १. क्षत्रिय वंश २. वैश्य वंश ३. शूद्रवंश ।
२१४. महावीर का जीव कहाया, सिंह की जिसने पाई काया। सम्यग्दर्शन गुण है धारा, किन गुरुवर का मिला सहारा।। उत्तर— अमितकीर्ति अथवा अमितप्रभू / अजितच्चय एवं अमित देव नामक दो मुनिराज।
२१५. पहली मछली जिसने त्यागा, लोभ किया न बन्धा है तागा। धीवर का तुम नाम बताओ, दृढ़ संकल्प को सदा निभाओ।। उत्तर—मृगसेन धीवर ।
२१६. देखो कैसा कर्म है आया, मुनि होकर भी नगरी जलाया। मुनि का सच्चा नाम बताना, कभी क्रोध न मन में लाना।। उत्तर—द्बीपायन मुनि।
२१७. मन्दिर जी है हमको जाना, दर्शन करके वापस आना। क्या बोलना हमें बताना, जिनशासन के नियम निभाना।। उत्तर— मन्दिरजी में प्रवेश करते समय ऊँ जय जय, निस्सही निस्सही निस्सही नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु, बोलना चाहिए एवं लौटते समय अस्सहि अस्सहि अस्सहि बोलना चाहिए।
२१८. रहने को है भवन बनाया, झाडा पोंछा जीव नशाया। कौन सी हिंसा वो कहलाती, कर विवेक से काम बताती।। उत्तर— आरम्भी हिंसा।
२१९. परम पूज्य हैं देव हमारे, भवसागर से हमको तारे। कैसे अर्घ है उन्हें चढ़ाना, खाली हाथ न मन्दिर जाना।। उत्तर— जिनेंन्द्र देव के समक्ष पाँच परमेष्ठी के प्रतीक पाँच अर्घ चढाना चाहिए।
२२०. ऋषभदेव की जिसमें गाथा, आदि पुराण है ग्रन्थ कहाता। रचा है किसने हमें बताना, गुरुवर को है शीश नवाना।। उत्तर— श्री जिनसेन आचार्य।
२२१. खेती करना धन है कमाना, जान बूझ न जीव सताना ।
कौन सी हिंसा हमें बताना, दान पुण्य कर पाप नशाना।।
उत्तर— ऊद्योगी हिंसा।
२२२. जिनवाणी है मार्ग बताती, शिवपथ पर है हमें चलाती। कैसे अर्घ है उन्हें चढ़ाना, खाली हाथ न शीश नवाना।। उत्तर— जिनवाणी के समक्ष प्रथमानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग एवं चरणानुयोग के प्रतीक चार अर्घ चढ़ाना चाहिए।
२२३. जन्म मरण से दुख ही पाता, जरा में मिलती कभी न साता। द्रव्य कौन सी चरण चढ़ाते, रोग है सारे भव के नशाते।। उत्तर— जल द्रव्य।
२२४. पूज्य दिगम्बर गुरु हमारे, भवसागर से हमको तारे। कैसे अर्घ हैं उन्हें चढ़ाते, क्षण में सारे पाप नशाते।। उत्तर— मुनिराज को सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र के प्रतीक तीन अघ्र्य चढ़ाते हैं।
२२५. निज तन धन की रक्षा करना, भले शत्रु से पड़ेगा लडना। वध कर राम ने सीता लाया, कौन सा हिंसा पाप कहाया।। उत्तर— विरोधी हिंसा।
२२६. मैं मारुँगा भाव बनाना, मन में बदला लेना ठाना। कौन सा भेद है वह कहलाता, हिंसा का फल नरक वो पाता।। उत्तर— संकल्पी हिंसा।
२२७. अष्ट कर्म है दुख के दाता, छूटे इनसे मेरा नाता। पूजा में है द्रव्य चढ़ाते, कौन सी भइया फल तब पाते।। उत्तर— धूप।
२२८. जन्म महोत्सव इन्द्र मनाया, मेरु पर अभिषेक कराया। जल है उसने कहाँ से लाया, नाम उदधि का बताओ भाया।। उत्तर— क्षीरसागर से ।
२२९. अंधकार है मोह कहाता, मोही प्राणी सुख न पाता। द्रव्य कौन सी चरण चढ़ाते, मोह नाशकर ज्ञान है पाते।। उत्तर—दीप।
२३०. प्रभु सम निर्मल पद है पाना, छोड़ के सब संसार है जाना। द्रव्य कौन सी चरण चढ़ाते, खण्ड खण्ड न जीवन पाते।। उत्तर—अक्षत।
२३१. है संसार दुखों का सागर, सुख खाली मेरी गागर ।
द्रव्य कौन सी चरण चढ़ाते, मुक्ति का फिर धाम है पाते।।
उत्तर— फल ।
२३२. मोक्षमार्ग में साथ निभाता, सुख का दाता दुक्ख नशाता। पवित्र आतम को है बनाता, कर्म कौन सा शुभ कहलाता।। उत्तर—पुण्य कर्म।
२३३. काम दाह है सदा जलाती, आतम का शुभ ज्ञान नशाती। द्रव्य कौन सी चरण चढ़ाते, काम भाव को शीघ्र नशाते।। उत्तर—पुष्प ।
२३४. मोक्ष मार्ग न जिसने जाना, मिथ्यादृष्टि जीव कहाना। भेद कौन से दो बतलाना, छहढाला तो ज्ञान खजाना।। उत्तर—मिथ्यात्व के दो भेद ·— १ अगृहीत मिथ्यात्व, २. गृहीत मिथ्यात्व।
२३५. दुर्गतियों में है ले जाता, सदा—सदा वह दु:ख का दाता। कर्म कौन सा वह कहलाता, है पदार्थ का भेद कहाता।। उत्तर—पाप कर्म।
२३६. महापुरुष है जिनको पाले, पाँच पाप को पूर्ण निकाले। मुनिवर कौन से व्रती कहाते, पथ पर चलते मुक्ति पाते।। उत्तर—महाव्रती।
२३७. नारी का तन जिसने पाया, इन्द्र है उसका स्वामी कहाया। अगले भव से मोक्ष है जाना, उसका सच्चा नाम बताना।। उत्तर— सौधर्म इन्द्र की इन्द्राणी शची।
२३८. सम्यग्दृष्टि वे कहलाते, मुनि को पर न शीश नवाते। महापुरुष वे कौन कहाए, हमको सच्चा मार्ग बताए।। उत्तर— तीर्थंकर।
२३९. पक्ष में दो अरु माह में चार, पर्व हैं आते सदाबाहर । नाम पर्व का हमें बताना, संयम धर जीवन सफल बनाना।। उत्तर—अष्टमी और चतुर्दशी पर्व।
२४०. ज्ञान ध्यान का ग्रन्थ कहाता, गुरु की गौरव गाथा गाता। ज्ञानार्णव शुभ नाम है पाया, गुरु का नाम बताओ भाया।। उत्तर— श्री शुभचन्द्र आचार्य ।
२४१. विद्याधर के हैं लघु भाया, शान्ति अनन्त नाम था पाया ।
मुनि बने सब नाम बताएं, गुरु शिष्य को शीश नवाएं।।
उत्तर— विद्याधर— आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज। शान्तिनाथ— मुनि श्री समयसागर जी महाराज। अनन्तनाथ— मुनि श्री योगसागरजी महाराज।
२४२. भक्ति से ही मुक्ति मिलती, भव—भव की आपद है टलती। भक्ति कौन सी मुनिवर पढ़ते, जब आचार्य को वंदन करते।। उत्तर— आचार्य श्री की वन्दना में तीन भक्ति करते १. श्री सिद्ध भक्ति। २. श्री श्रुत भक्ति। ३. श्री आचार्य भक्ति ।
२४३. सब कुछ पाकर सब कुछ त्यागा, तन पर रखा न इक भी धागा। तीन युद्ध है कौन से कीने, भरत भाई मुख भये मलीने।। उत्तर— भरत—बाहुबली के मध्य तीन युद्ध १. जल युद्ध , २. दृष्टि युद्ध, ३. मल्ल युद्ध ।
२४४. चार प्रकार का दान है होता, निर्मल जल सम पाप को धोता। दानों के तुम नाम बताओ, दान देय दाता बन जाओ।। उत्तर—चार प्रकार के दान— १. आहार दान २. औषध दान ३. अभय दान ४. उपकरण दान
२४५. दुख से उठाकर सुख में धरता, धरम वही सच्चा हित करता। दश धर्मों के नाम बताओ, धर्मात्मा तुम भी बन जाओ।। उत्तर—दश धर्मो के नाम १. उत्तम क्षमा २. उत्तम मार्दव ३. उत्तम आर्जव ४. उत्तम शौच ५. उत्तम सत्य ६. उत्तम संयम ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिं’चन्य १०. उत्तम ब्रह्मचर्य
२४६. नित परिवर्तन जग में करता, जीव जगत में दुख ही सहता। परिवर्तन के नाम बताओ, पाँचों से छुटकारा पाओ।। उत्तर—पाँच परिवर्तन के नाम:— १. द्रव्य, २. क्षेत्र, ३. काल , ४. भाव, ५. भव।
२४७. हम सबके गुरु विद्यासागर, भरते सबकी ज्ञान से गागर। राज्य में कितने बिहार कीना, वीर प्रभु का नाम है लीना।। उत्तर—१. मध्य प्रदेश, २. राजस्थान, ३. उत्तर प्रदेश, ४. महाराष्ट्र, ५. गुजरात,६.बिहार,७. छत्तीसगढ़ ,८. उडीसा,९. पश्चिम बंगाल अर्थात १०. राज्यों में आवागमन किया है।
२४८. अवश का है कर्तव्य कहाता, पाप बन्ध से सदा बचाता। षट् आवश्यक मुनिवर पाले, कौन से भैया भव से तारे।। उत्तर— मुनिराज के षट् आवश्यक, १. समता, २. स्तुति, ३. वन्दना, ४. प्रत्याख्यान, ५. प्रतिक्रमण, ६. कायोत्सर्ग।
२४९. श्रावक रसी का व्रत है पाले, व्रत संयम ही सुख के सहारे। सात रसी का नाम बताना, दिन अनुसार है हमें गिनाना।। उत्तर—१. सोमवार हरी का त्याग २. मंगलवार मीठा का त्याग ३. बुधवार घी का त्याग ४. गुरुवार दूध का त्याग ५. शुक्रवार दही का त्याग ६. शनिवार तेल का त्याग ७. रविवार नमक का त्याग
२५०. सागर नगर में मुनिव्रत धारा, विद्या गुरु का मिला सहारा। मलप्पा के पुत्र कहाते, नाम बताओ शिवपुर पाते।। उत्तर— मुनि श्री योगसागर जी महाराज।