इस पाँचवें परकोटे के आगे इंद्रपुर की चारों ही दिशाओं में दिव्य वन खंड हैं। इनको ही ‘नंदन वन’ कहते हैं। पूर्वादिक दिशाओं में क्रम से अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्रवन हैं। ये वन खण्ड पद्मद्रह के समान अर्थात् हजार योजन लम्बे, पाँच सौ योजन चौड़े हैं। इन चारों दिशा संबंधी वनों में प्रत्येक के मध्य में एक-एक ‘चैत्यवृक्ष’ हैं। ये जम्बूवृक्ष के समान प्रमाण वाले हैं अर्थात् १० योजन ऊँचे, मध्य में ६ योजन चौड़े, ऊपर में ४ योजन चौड़े, प्रमुख चार महाशाखा एवं अनेकों लघु शाखाओं से सहित हैं। इन एक-एक चैत्यवृक्षों के चारों तरफ ‘पल्यंकासन’ से जिनप्रतिमायें विराजमान हैं उनको नमस्कार हो। इस प्रकार से चैत्य वृक्षों से शोभित, पुष्पकरिणी, वापी, मणिमय देव भवनों से संयुक्त, फल, पुष्प, पत्र आदि से परिपूर्ण ये वनखंड अपने ‘नंदन’ नाम से सार्थक होकर सभी को आनंद देने वाले हैं।