ऐसे ही आठवें नंदीश्वर द्वीप में अंजनगिरि, दधिमुख, रतिकर पर्वत हैं। ये नीचे से ऊपर तक एक जैसे प्रमाण वाले हैं-बीच में फूले हुये नहीं हैं। यथा-
अंजनगिरि पर्वत ८४ हजार योजन ऊँचा और इतना ही-चौरासी हजार योजन चौड़ा गोल है। इंद्रनील मणि का है-नीला है। इसके चारों बावड़ियों में दधिमुख पर्वत दश हजार योजन ऊँचे, दश हजार योजन विस्तृत गोल हैं। रतिकर पर्वत भी प्रत्येक दिशा की चार-चार बावड़ी के बाहर के कोण भाग में दो-दो होने से एक दिशा में आठ-आठ हैं। ये एक-एक हजार योजन ऊँचे एवं एक-एक हजार योजन विस्तृत हैं। गोल हैं। ये सभी बावन पर्वत ऊपर-नीचे समान हैं। बीच-बीच में वृिंद्धगत नहीं हैं।हिन्दी पूजा की पंक्ति के अनुसार ‘‘ढोल सम गोल ऊपर तले सुन्दरं। से आज ये बीच-बीच में ढोलक के समान वृिंद्धगत बनाते हैं। यह गलत परम्परा चल रही है। आप देखें-
त्रिलोकसार में लिखा है-
अथात्र दिक््चतुष्टयस्थितानां पर्वतानामाख्यां संख्यामवस्थानं च निरूपयति-
एक्कचउक्कट्ठंजणदहिमुहरइयरणगा पडिदिसम्हि।
मज्झे चउदिसवावीमज्झे तब्बाहिरदुकोणे।।९६७।।
एकचतुष्काष्टाञ्जनदधिमुखरतिकरनगा: प्रतिदिशं।
मध्ये चतुर्दिग्वापीमध्ये तद्बाह्यद्विकोणे।।९६७।।
आगे इस द्वीप की चारों दिशाओं में स्थित पर्वतों के नाम, संख्या और अवस्थान का निरूपण करते हैं-
गाथार्थ-नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा के मध्य में एक, चारों दिशा सम्बन्धी बावड़ियों के मध्य में चार और बावड़ियों के बाह्य दो-दो कोनों में एक-एक अर्थात् ८ क्रमश: अञ्जन, दधिमुख और रतिकर नाम के पर्वत हैं।।९६७।।
विशेषार्थ-नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा के मध्य भाग में अञ्जन नाम का एक पर्वत है। इस पर्वत की चारों दिशाओं में चार बावड़ियाँ हैं जिनके मध्य में दधिमुख नाम का एक-एक अर्थात् ४ दधिमुख पर्वत हैं तथा इन बावड़ियों के दो-दो बाह्य कोनों पर एक-एक अर्थात् आठ रतिकर पर्वत हैं। इस प्रकार एक दिशा में (अञ्जन १, दधिमुख ४ और रतिकर ८) · १३ पर्वत और ४ बावड़ियाँ हैं अत: चारों दिशाओं में (अञ्जन ४, दधिमुख १६ और रतिकर ३२) · ५२ पर्वत और १६ बावड़ियाँ हैं।
अथ तद्गिरीणां वर्णं परिमाणं च प्रतिपादयति-
अंजणदहिकणयणिहा चुलसीदिदहेक्कजोयणसहस्सा।
वट्टा वासुदएणय सरिसा बावण्णसेलाओ१।।९६८।।
अञ्जनदधिकनकनिभा: चतुरशीतदशैकयोजनसहस्रा:।
वृत्ता: व्यासोदयेन सदृशा: द्वापञ्चाशच्छैला:।।९६८।।
अब उन पर्वतों के वर्ण और प्रमाण का प्रतिपादन करते हैं :-
गाथार्थ-अञ्जन, दधिमुख और रतिकर पर्वत यथाक्रम अञ्जन, दधि और स्वर्ण सदृश वर्ण वाले हैं। ये क्रमश: चौरासी हजार, दस हजार और एक हजार योजन प्रमाण वाले हैं। इनका उदय (ऊँचाई) और व्यास सदृश है। आकार गोल है। इस प्रकार ये बावन पर्वत हैं।।९६८।।
विशेषार्थ-चार अञ्जन पर्वत अञ्जन-कज्जल सदृश, १६ दधिमुख पर्वत दधि सदृश (श्वेत) और ३२ रतिकर पर्वत तपाए हुए स्वर्ण सदृश वर्ण वाले हैं। अञ्जन पर्वतों की ऊँचाई एवं भूमुख व्यास ८४००० योजन, दधिमुखों का १०००० योजन और रतिकरों का १००० योजन है। अर्थात् इन पर्वतों की जितनी ऊँचाई है, उतनी ही नीचे ऊपर चौड़ाई है। ये खड़े हुए गोल आकार वाले हैं। इनकी सम्पूर्ण संख्या ५२ हैं।१
हस्तिनापुर में निर्मित जंबूद्वीप परिसर में तेरहद्वीप रचना में बनी हुई नंदीश्वर द्वीप रचना में पर्वत का आकार देखें एवं आगम के आलोक में स्वाध्याय करके समझें तथा वैसा ही प्रतिपादन करें।