नरक से निकलकर कोई भी जीव अनंतर भव में चक्रवर्ती, बलभद्र नारायण और प्रतिनारायण नहीं हो सकता है, यह बात निश्चित है।
प्रथम तीन पृथ्वियों से निकले हुए कोई जीव तीर्थंकर हो सकते हैं।
चौथी पृथ्वी तक के नारकी वहां से निकलकर चरम शरीरी होकर उसी भव से मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। पाँचवी पृथ्वी तक के जीव संयमी मुनी हो सकते हैं। छठी पृथ्वी तक के नारकी जीव देशव्रती हो सकते हैं। सातवीं पृथ्वी से निकल कर जीव कदाचित् सम्यक्त्व को ग्रहण कर सकते हैं परन्तु ये सातवीं पृथ्वी से निकले हुए नारकी नियम से पंचेन्द्रिय, पर्याप्तक, संज्ञी तिर्यंच ही होते हैं, मनुष्य नहीं हो सकते हैं-यह नियम है।
इस प्रकार अति संक्षेप से नरक लोक का वर्णन किया गया है जो कि भव्य जीवों को नरक के दु:खों से भय उत्पन्न कराने के लिए एवं सुख के साधन धर्म में आदर कराने के लिए है। विशेष वर्णन अन्यत्र देखना चाहिए।