[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] ==
अथ नरलोकजिनगृहाणि कुत्र कुत्र तिष्ठन्ति इत्युत्तेक़ आह—
मंदरकुलवक्खारिसुमणुसुत्तररुप्पजंबुसालिसु। सीदी तीसं तु सयं चउ चउ सत्तरिसयं दुपणं।।५६२।।
मन्दरकुलवक्षारेषु मानुषोत्तररूप्यजम्बूशाल्मलिषु। अशीतिः त्रिंशत् तु शतं चत्वारि चत्वारि सप्ततिशतं द्विपञ्च।।५६२।।
मंदर। मन्दरेषु ५ कुलपर्वतेषु ३० वक्षारेषु १०० इष्वाकारेषु ४ मानुषोत्तरे १ विजयार्धेषु १७० जम्बूवृक्षेषु ५ शाल्मलीवृक्षेषु ५ यथासंख्यं जिनगृहाण्यशीति ८० त्रिंशत् ३० शतं १०० चत्वारि ४ चत्वारि ४ सप्तत्युत्तरशतं १७० द्विवारपञ्च ५-५ भवन्ति।।५६२।।
नरलोक के चैत्यालय कहाँ-कहाँ स्थित हैं ? उन्हें कहते हैं—
गाथार्थ — सुमेरु, कुलाचल, वक्षारगिरि, इष्वाकार, मानुषोत्तर, रूप्यगिरि (विजयार्ध) जम्बूवृक्ष और शाल्मलि वृक्षों पर क्रम से अस्सी, तीस, सौ, चार, चार, एक सौ सत्तर, पाँच और पाँच जिनमन्दिर हैं।।५६२।।
विशेषार्थ — पाँच सुमेरु पर्वतों पर ८० जिनमंदिर हैं, तीस कुलाचलों पर ३०, गजदन्त सहित सौ वक्षारगिरि पर १००, चार इष्वाकार पर ४, मानुषोत्तर पर ४, एक सौ सत्तर विजयार्धों पर १७०, पाँच जम्बूवृक्षों पर ५ और पाँच शाल्मलि वृक्षों पर ५ जिनमन्दिर स्थित हैं। इस प्रकार नरलोक में कुल (८० + ३० + १०० + ४ + ४ + १७० + ५ + ५ ) = ३९८ जिनमन्दिर हैं।