क्षेत्र परिचय – यह क्षेत्र मूलबद्री से 25 कि.मी. दूर सीधे हाथ की तरफ 1 कि.मी. कच्ची सडक पर स्थित है। तथा कारकल से 8 कि.मी. पहले है।यहाँ 800 साल पहले आद्य चारूकीर्ति स्वामी जी हाथी पर पार्श्वनाथ भगवान व कूष्ममाडिणी देवी की प्रतिमा को गॉव-2 होकर नल्लुर लाए थे। यहॉ आने के बाद प्रतिमा की पूजा करी। पूजा के बाद प्रतिमा उठी नही । सबजने थक कर रात्री मे वही सो गएॅ। तब रात्री मे स्वामी जी को स्वप्न आया की मूर्ति को यही स्थापित करे।उसके बाद मूर्ति को यही स्थापित कर मन्दिर बनवाया। हाथी व आघ्य चारू कीर्ति जी की भी यही समाधि हूई। हाथी के गले मे जो घंटा बंधा था वह आज भी मन्दिर में लगा हुआ हैं जो रोज़ बजाने के काम आता है। यहॉ समवशरण की रचना बहुत सुन्दर है। यहाँ धर्मशाला है , लेकिन भोजनशाला नहीं है।