उववादसभा विविहा कप्पातीदाण होंति सव्वाणं।
जिणभवणा पासादा णाणाविहदिव्वरयणमया१।।४५३।।
अभिसेयसभा संगीयपहुदिसालाओ चित्तरुक्खा य।
देवीओ ण दीसंति कप्पातीदेसु कइया वि।।४५४।।
सब कल्पातीतों के विविध प्रकार की उपपाद सभाएँ, जिनभवन, नाना प्रकार के दिव्य रत्नों से निर्मित प्रासाद, अभिषेकसभा, संगीत आदि शालाएँ और चैत्यवृक्ष भी होते हैं परन्तु कल्पातीतों के देवियाँ कदापि नहीं दिखतीं।।४५३-४५४।।