

अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन वंद्य हैं।
गंगानदी का नीर निर्मल, बाह्य मल धोवे सदा। 




चम्पा चमेली केवड़ा, नाना सुगन्धित ले लिये। 
पायस मधुर पकवान मोदक, आदि को भर थाल में। 




अंगूर अमरख आम्र अमृत, फल भराऊँ थाल में। 



चिच्चिंतामणिरत्न, तीन लोक में श्रेष्ठ हों। 