(१) कालनिधि-यह लौकिक व्याकरण, छंद आदि शास्त्रों का ज्ञान एवं वीणा, बांसुरी, नगाड़े आदि वाद्यों को देती है।
(२) महाकाल निधि-यह असि, मषि आदि षट्क्रियाओं के साधन द्रव्य एवं सर्व संपदाओं को देती है।
(३) नैसर्प्य-यह निधि शय्या, आसन, मकान आदि देती है।
(४) पांडुक-यह निधि सभी धान्यों को एवं छहों रसों को देती है।
(५) पद्म-यह निधि रेशमी, सूती आदि सब तरह के वस्त्रों को देती है।
(६) माणव-यह निधि नीतिशास्त्र और अनेक प्रकार के शब्दों को देती है।
(७) पिंगल-यह निधि अनेक प्रकार के दिव्य आभरण देती है।
(८) शंख-यह निधि प्रदक्षिणार्थ नाम के शंख से सुवर्ण की सृष्टि उत्पन्न करती है।
(९) सर्वरत्न-यह निधि नील, महानील, पद्मराग, मरकत आदि मणिरत्नों को देती है।