हस्तिनापुर में भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ एवं भगवान अरनाथ ये तीन तीर्थंकर जन्मे हैं। ये तीनों ही तीर्थंकर तीन-तीन पद के धारक हुए हैं। ये ही इन तीनों तीर्थंकर भगवन्तों की एवं हस्तिनापुर तीर्थ की विशेषता है। इन तीनों तीर्थंकरों के तीन-तीन पदों की अपेक्षा यह ‘नवनिधि व्रत’ किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से नवनिधि-ऋद्धि से भंडार भरेगा। सर्व लौकिक संपत्ति के साथ-साथ अलौकिक आध्यात्मिक संपत्ति भी प्राप्त होगी।
आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास में आष्टान्हिक पर्व में एक दिन पहले सप्तमी से पूर्णिमा तक नवदिन व्रत करना-उत्तम विधि नव उपवास करना, मध्यम में अल्पाहार और जघन्य में एकाशन-एक बार शुद्ध भोजन करना है। व्रत के दिन भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरहनाथ तीर्थंकरों की समुच्चय पूजन या पृथक्-पृथक् पूजन करके उनके जीवन चरित्र को पढ़ना है।
इस व्रत में लगातार ९ माह तक प्रत्येक माह में तिथि का कोई नियम न करके एक-एक व्रत कर लेना, यह सर्वजघन्य विधि है। ऐसे मात्र नव व्रत करना है।
समुच्चय मंत्र- ॐ ह्रीं अर्हं तीर्थंकरचक्रवर्तिकामदेवपदधारक शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथतीर्थंकरेभ्यो नम:।
प्रत्येक व्रत के पृथक्-पृथक् मंत्र-
१. ॐ ह्रीं अर्हं षोडशतीर्थंकरपदप्राप्तश्रीशांतिनाथाय नम:।
२. ॐ ह्रीं अर्हं पंचमचक्रवर्तिपदप्राप्तश्रीशांतिनाथाय नम:।
३. ॐ ह्रीं अर्हं द्वादशकामदेवपदप्राप्तश्रीशांतिनाथाय नम:।
४. ॐ ह्रीं अर्हं सप्तदशतीर्थंकरपदप्राप्तश्रीकुंथुनाथाय नम:।
५. ॐ ह्रीं अर्हं षष्ठचक्रवर्तिपदप्राप्तश्रीकुन्थुनाथाय नम:।
६. ॐ ह्रीं अर्हं त्रयोदशकामदेवपदप्राप्तश्रीकुंथुनाथाय नम:।
७. ॐ ह्रीं अर्हं अष्टादशतीर्थंकरपदप्राप्तश्रीअरनाथाय नम:।
८. ॐ ह्रीं अर्हं सप्तमचक्रवर्तिपदप्राप्तश्रीअरनाथाय नम:।
९. ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्दशकामदेवपदप्राप्तश्रीअरनाथाय नम:।
व्रत पूर्ण करके तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान की या तीनों तीर्थंकर भगवन्तों की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करावें। हस्तिनापुर तीर्थ और सम्मेदशिखर तीर्थ की वंदना करके श्री शांतिनाथ का सोलह दिन का महाविधान करके उद्यापन पूर्ण करें और भी अपनी शक्ति के अनुसार ९-९ उपकरण आदि मंदिर में प्रदान करें। मुनि-आर्यिका आदि गुरुओं को आहारदान, पिच्छी-कमण्डलु, शास्त्र दान देवें। इस विधि से इस ‘नवनिधि व्रत’ को करने वाले नियम से संसार के समस्त सुखों का अनुभव कर चक्रवर्ती, कामदेव, तीर्थंकर आदि पदों को प्राप्त कर अक्षय-अतीन्द्रिय मोक्षसुख को प्राप्त करेंगे, यही इस व्रत का फल है। द्वितीय प्रकार से नवनिधि व्रतविधि-इस नवनिधि व्रत में २१ उपवास किये जाते हैं। चौदह चतुर्दशियों के चौदह, नौ नवमियों के नौ, तीन तृतीयाओं के तीन एवं पाँच पञ्चमियों के पाँच उपवास किये जाते हैं। प्रत्येक उपवास के अनन्तर एकाशन करने का विधान है।
इस व्रत में ‘ॐ ह्रीं अक्षयनिधिप्राप्तेभ्यो जिनेन्द्रेभ्यो नम:’ मंत्र का जाप किया जाता है।