हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।टेक.।।
संवर एवं निर्जरा तत्त्व, नवमी अध्याय में वर्णित हैं।
तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वामि के, द्वारा ये उपदेशित हैं।।
आस्रव निरोध संवर व निर्जरा, फल दे कर्म जो खिर जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।१।।
तेरह प्रकार चारित्र से मुनिजन, कर्मों का संवर करते।
उपसर्ग परीषह को सहने से, अशुभ कर्म उनके झड़ते।।
चारों ध्यानों में धर्म-शुक्ल, ध्यानों में स्थिरता पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।२।।
निर्ग्रन्थ वीतरागी मुनिवर ही, पूर्ण निर्जरा करते हैं।
स्नातक बन ‘‘चंदनामती’’, वे ही मुक्ति श्री वरते हैं।।
योगों की सारी महिमा है, योगी ही अयोगी बन पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।३।।