‘मराठी व्रत कथा संग्रह’ पुस्तक में आया है कि-
भरत महाराज ने आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से नवमी तक नव दिन तक अखण्डरूप से भगवान की पूजा करके व्रत किया है। पुनश्च आश्विन शुक्ला दशमी को दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया है। इसीलिए इसका ‘‘विजया- दशमी’’ नाम प्रसिद्ध हुआ है।आज भी यह ‘‘नवरात्रि’’ व्रत करने की परम्परा ‘मराठी व्रत कथा ग्रंथ’ के आधार से प्रसिद्ध है।
व्रत विधि-नवरात्रि व्रत आश्विन शुक्ला एकम् से आश्विन शुक्ला नवमी तक किया जाता है। प्रात: स्नानादि कर शुद्ध वस्त्र पहनकर शुद्ध द्रव्य लेकर जिनालय में जाएँ। वहाँ जिनालय की तीन प्रदक्षिणा देकर ईर्यापथशुद्धिपूर्वक आदिनाथ भगवान की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करें, अष्टद्रव्य से पूजन करें। पुन: श्रुत और गणधर की पूजा कर चक्रेश्वरी यक्षी व गोमुख यक्ष की अर्चना करें।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं आदिनाथतीर्थंकराय गोमुखयक्ष-चक्रेश्वरीयक्षी सहिताय नम: स्वाहा। (सुगंधित पुष्पों से १०८ बार मंत्र जपें)