आदरअणादरक्खा जंबूदीवस्स अहिवई होंति।
तह य पभासो पियदंसणो य लवणंबुरासिम्मि१।।३८।।
भुंजेदि प्पियणामा दंसणणामा य धादईसंडं।
कालोदयस्स पहुणो कालमहाकालणामा य।।३९।।
पउमो पुंडरियक्खो दीवं भुंजंति पोक्खरवरक्खं।
चक्खुसुचक्खू पहुणो होंति य मणुसुत्तरगिरिस्स।।४०।।
सिरिपहुसिरिधरणामा देवा पालंति पोक्खरसमुद्दं।
वरुणो वरुणपहक्खो भुंजंते चारु वारुणीदीवं।।४१।।
वारुणिवरजलहिपहू णामेणं मज्झमज्झिमा देवा।
पंडुरयपुप्फदंता दीवं भुंजंति चारु खीरवरं।।४२।।
विमलपहक्खो विमलो खीरवरंवाहिणीसअहिवइणो।
सुप्पहधदवरदेवा धदवरदीवस्स अधिणाहा।।४३।।
उत्तरमहप्पहक्खा देवा रक्खंति खोदवरिंसधुं।
णंदीसरम्मि दीवे गंधमहागंधया पहुणो।।४५।।
णंदीसरवारिणिहिं रक्खंते णंदिणंदिपहुणामा।
चंदसुभद्दा देवा भुंजंते अरुणवरदीवं।।४६।।
अरुणवरवारिरािस रक्खंते अरुणअरुणपहणामा।
अरुणब्भासं दीवं भुजंति सुगंधसव्वगंधसुरा।।४७।।
सेसाणं दीवाणं वारिणिहीणं च अहिवई देवा।
जे केइ ताण णामस्सुवएसो संपहि पणट्ठो।।४८।।
पढमपवण्णिददेवा दक्खिणभागम्मि दीवउवहीणं।
चरिमुच्चारिददेवा चेट्ठंते उत्तरे भाए।।४९।।
णियणियदीउवहीणं उवरिमतलसंठिदेसु णयरेसुं।
बहुविहपरिवारजुदा कीडंते बहुविणोदेणं।।५०।।
एक्कपलिदोवमाऊ पत्तेक्वकं दसधणूणि उत्तुंगा।
भुंजंते विविहसुहं समचउरस्संगसंठाणा।।५१।।
जम्बूद्वीप के अधिपति आदर और अनादर नामक तथा लवणसमुद्र के प्रभास और प्रियदर्शन नामक दो व्यन्तरदेव हैं।।३८।।
प्रिय और दर्शन नामक दो देव धातकीखण्डद्वीप का उपभोग करते हैं तथा काल और महाकाल नामक दो देव कालोदक समुद्र के प्रभु हैं।।३९।।
पद्म और पुण्डरीक नामक दो देव पुष्करवरद्वीप को भोगते हैं। चक्षु व सुचक्षु नामक दो देव मानुषोत्तर पर्वत के प्रभु हैं।।४०।।
श्रीप्रभ और श्रीधर नामक दो देव पुष्करसमुद्र का तथा वरुण और वरुणप्रभ नामक दो देव वारुणीवरद्वीप का भलीभाँति रक्षण करते हैं।।४१।।
मध्य और मध्यम नामक दो देव वारुणीवर समुद्र के प्रभु हैं। पाण्डुर और पुष्पदन्त नामक दो देव क्षीरवरद्वीप की रक्षा करते हैं।।४२।।
विमलप्रभ और विमल नामक दो देव क्षीरवरसमुद्र के तथा सुप्रभ और घृतवर नामक दो देव घृतवरद्वीप के अधिपति हैं।।४३।।
उत्तर और महाप्रभ नामक दो देव घृतवरसमुद्र की तथा कनक और कनकाभ नामक दो देव क्षौद्रवरद्वीप की रक्षा करते हैं।।४४।।
पूर्ण और पूर्णप्रभ नामक दो देव क्षौद्रवरसमुद्र की रक्षा करते हैं। गंध और महागंध नामक दो देव नन्दीश्वरद्वीप के प्रभु हैं।।४५।।
नन्दि और नन्दिप्रभ नामक दो देव नन्दीश्वर समुद्र की तथा चन्द्र और सुभद्र नामक दो देव अरुणवरद्वीप की रक्षा करते हैं।।४६।।
अरुण और अरुणप्रभ नामक व्यन्तर देव अरुणवरसमुद्र की तथा सुगंध और सर्वगंध नामक देव अरुणाभासद्वीप की रक्षा करते हैं।।४७।।
शेष द्वीप-समुद्रों के जो कोई भी अधिपति देव हैं, उनके नामों का उपदेश इस समय नष्ट हो गया है।।४८।।
इन देवों में से पहिले (युगलों में से) कहे हुए देव द्वीप-समुद्रों के दक्षिणभाग में तथा अन्त में कहे हुए देव उत्तरभाग में स्थित हैं।।४९।।
ये देव अपने-अपने द्वीप-समुद्रों के उपरिम भाग में स्थित नगरों में बहुत प्रकार के परिवार से युक्त होकर बहुत विनोद के साथ क्रीडा करते हैं।।५०।।
इनमें से प्रत्येक की आयु एक पल्योपम व ऊँचाई दश धनुषप्रमाण है। ये सब समचतुरस्रसंस्थान से युक्त होते हुए विविध प्रकार के सुख को भोगते हैं।।५१।।