आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं | नाभि के स्पंदन से रोग की पहचान का जिक्र भी इन पद्धतियों में मिल जाता है | नाभि के खिसकने से मानसिक और आध्यात्मिक क्षमताएं कम हो जाती हैं | नाभि को पाताललोक भी कहा गया है | कहतें है मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहता है |यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है, तब स्त्रियां गर्भधारण योग्य होती हैं | यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भधारणा नहीं कर सकतीं |
कब पड़ता है फेफड़ों पर असर
यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चलता है तो समझा जाता है कि छाती की तरफ अग्नाशय खराब हो रहा है | इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है | मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं | यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चला जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं |
कब होते हैं कफजनित रोग
नाभि का स्पंदन बायीं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खांसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होने लगते हैं | यदि ज्यादा दिनों तक ऐसा होता रहा तो स्थायी रूप से बीमारियाँ घर कर लेती हैं |
कब होती है मन्दाग्नि
नाभि का स्पंदन दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मन्दाग्नि हो सकती है | पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं | इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है | गर्मी – सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है |
कब होते हैं मोटे ओर दुबले
यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है | वायु विकार हो जाता है | यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जायेगा |
जानकार से ही इलाज कराएं
नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है | थोड़ी- सी गडबड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है | नाभि – नाडियों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है | नाभि यदि गलत जगह पर खिसक जाए ओर स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकता है | इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थान बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए |
इस बात का भी रखें ध्यान
नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें | सुबह खाली पेट उपचार के लिए जा चाहिए, क्योंकि खाली पेट ही नाभि व नाडी की स्थिति का पता लग सकता है |