दु:खों से घबड़ाकर नारकी जीव मरना चाहते हैं किन्तु आयु पूरी हुये बिना मर नहीं सकते हैं। उनके शरीर तिल के समान खंड-खंड होकर भी पारे के समान पुन: मिल जाते हैं। इन नारकियों की जघन्य आयु कम से कम १० हजार वर्ष है एवं उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है। १० हजार वर्ष से एक समय अधिक से लेकर एवं तेंतीस सागर से एक समय कम के मध्य की सभी आयु मध्यम कहलाती है।
प्रथम नरक में १३ पटल हैं। प्रथम पटल की उत्कृष्ट आयु ९०, ००० वर्ष है। द्वितीय पटल में यह आयु जघन्य हो जाती है तथा उत्कृष्ट आयु नब्बे लाख वर्ष हो जाती है। ऐसे ही आगे-आगे के पटलों में जघन्य आयु का प्रमाण पूर्व-पूर्व के पटलों की उत्कृष्ट आयु का प्रमाण है। ऐसे ही प्रथम नरक की उत्कृष्ट आयु दूसरे नरक की जघन्य आयु मानी गई है। जैसे-प्रथम नरक की उत्कृष्ट आयु १ सागर है वही दूसरे नरक में जघन्य आयु है। विशेष-
इस प्रकार से आयु प्रमाण काल तक उन नरकों में नारकियों को क्षणमात्र के लिये भी सुख नहीं है, प्रतिक्षण दारुण दु:खों का ही अनुभव होता रहता है। इन नारकियों के शरीर आयु के अंत में वायु से ताड़ित मेघों के समान नि:शेष विलीन हो जाते हैं। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार से पूर्व में किये गये दोषोें से जीव नरकों में जिन नाना प्रकार के दु:ख को प्राप्त करते हैं, उन दु:खों के स्वरूप का सम्पूर्णतया वर्णन करने के लिए भला कौन समर्थ है? यहाँ पर जो जीव पापों में प्रवृत्त होकर आनंद मानते हैं वे ही जीव चिरकाल तक ऐसे नरकवास में निवास करते हैं।