नरकों में नारकियों को चार प्रकार के दु:ख होते हैं। क्षेत्र जनित, शारीरिक, मानसिक और असुरकृत्।
नरक में उत्पन्न हुए शीत, उष्ण, वैतरणी नदी, शाल्मलिवृक्ष आदि के निमित्त से होने वाले दु:ख क्षेत्रज दु:ख कहलाते हैं।
शरीर में उत्पन्न हुए रोगों के दु:ख और मार-काट, कुंभीपाक आदि के दु:ख शारीरिक दु:ख है।
संक्लेश, शोक, आकुलता, पश्चात्ताप आदि के निमित्त से उत्पन्न दु:ख मानसिक दु:ख कहलाते हैं।
एवं तीसरी पृथ्वी पर्यंत संक्लेश परिणाम वाले असुरकुमार जाति के भवनवासी देवों के द्वारा उत्पन्न कराये गये दु:ख असुरकृत् दु:ख कहलाते हैं।