ये नारकियों के बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं।
इंद्रक—जो अपने पटल के सब बिलों के बीच में हो वह इन्द्रक कहलाता है।
श्रेणीबद्ध—जो बिल चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में पंक्ति से स्थित रहते हैं वे श्रेणीबद्ध हैं।
प्रकीर्णक—श्रेणीबद्ध बिलों के बीच में इधर-उधर रहने वाले बिलों को प्रकीर्णक संज्ञा है।
रत्नप्रभा आदि ७ पृथ्वियों में क्रम से १३, ११, ९, ७, ५, ३, १ इस प्रकार कुल ४९ इंद्रक बिल हैं। इन्हें प्रस्तार एवं पटल भी कहते हैं।
प्रथम नरक में १३ इंद्रक पटल हैं। ये एक पर एक ऐसे खन पर खन बने हुए के समान हैं। ये तलघर के समान भूमि में हैं एवं चूहे आदि के बिलोें के समान हैं। औंधे मुख बने हुए हैं। व्यवस्थित दरवाजे खिड़की आदिकों से रहित हैं। इसीलिए इनका बिल नाम सार्थक है।