(जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक के आधार से)
आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को उपवास करके मंदिर में जाकर चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा का महाभिषेक-पूजा आदि करके, शास्त्र व गुरु की भी पूजा करें पुन: यक्ष-यक्षी आदि की पूजा करें। पुन: चौबीस तीर्थंकर का जाप्य करें- मंत्र-ॐ ह्रीं यक्ष-यक्षीसहितेभ्य: श्री वृषभादि चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:। (१०८ पुष्पों से जाप करें)
२.मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हद्भ्यो नम:। (१०८ पुष्पों से जाप्य करें)
पुन: महा अघ्र्य थाल में लेकर सात बत्तियों का दीपक उसमें रखकर वेदी की तीन प्रदक्षिणा देवें। पुन: सात दीपक लेकर क्रम से निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए एक-एक दीपक का अवतरण करें। १. आत्मज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। २. आचारज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। ३. पुरुषज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। ४. पुत्रज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। ५. पुण्यज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। ६. सहोदरज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा। ७. छत्रज्योति: नित्यं अस्माकं भवतु स्वाहा।
इस प्रकार सात दीपकों से अवतरण विधि सम्पन्न करें। अनंतर शांति पाठ विसर्जन करके महिलाएँ सात सुवासिनी स्त्रियों को कुंकुम लगावें।
यह पूजा विधि आषाढ़ शुक्ला अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक पुन: आगे से करते हुए कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा तक करना है।
इस मध्य प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी को उपवास या जघन्य विधि एकाशन करना है तथा प्रत्येक दिन पूजा विधि पूरी करें तथा भोजन में शुद्ध भोजन दिन में एक बार अथवा दो बार लेवें, औषधि, दूध, आदि भी दिन में लेवें, रात्रि में चतुर्विध आहार का त्याग रखें।
ऐसे यह व्रत पूर्ण कर यथाशक्ति उद्यापन सम्पन्न करें। चौबीसी प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करावें तथा चौबीस तीर्थंकर की जन्मभूमि व निर्वाणभूमि की वंदना करें। कम से कम एक जन्मभूमि व एक निर्वाणभूमि की वंदना अवश्य करें।
व्रत की कथा-
राजगृही के महाराजा श्रेणिक के राजश्रेष्ठी जिनदत्त, उनकी पत्नी जिनदत्ता पुत्र वृषभदत्त और पुत्रवधू सुमति, इन चारों ने इस व्रत को किया। इसी मध्य जिनदत्त पर दुष्टों ने भयंकर उपसर्ग किया। व्रत के प्रभाव से उपसर्ग दूर हुआ। पुन: एक दिन सुमति की पुत्री को सांप ने काट लिया। इधर व्रत की पूजाविधि चल रही थी, तभी पुत्री के ऊपर गंधोदक छिड़कते ही विष उतर गया।
इसी मध्य एक दिन सुमति के भाई पर अकस्मात् भयंकर उपसर्ग हुआ तभी यक्ष देवता ने प्रकट होकर उपसर्ग दूर कर दिया। इस प्रकार पूजा विधि का फल प्रत्यक्ष दिखने पर सभी भक्तों का इस व्रत पर विशेष विश्वास हो गया।
अनन्तर सुमति ने इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग सुख प्राप्त कर परम्परा से मोक्ष प्राप्त किया है।