जो व्रती मोक्ष—सुख की उपेक्षा या अवगणन करके (परभव में) असार सुख की प्राप्ति के लिए निदान या अभिलाषा करता है, वह कांच के टुकड़े के लिए वैडूर्यमणि को गंवाता है। छेत्तूण य कप्पूरं कुणइ वइं कोद्दवस्स सो मूढो। आचुण्णिऊण रयणं अविसेसो गेण्हए दोरो।। दहिऊण य गोसीसं गेण्हइ छारं तु सो अबुद्धीओ। जो चरिय तवं घरं मरइ य सनियाणमरणेणं।।
जो तपश्चरण करके निदानयुक्त मरण से मरता है, वह मूर्ख मानो कपूर के पेड़ को काटकर कोदों की खेती करना चाहता है, रत्न को पीसकर वह अविवेकी डोरा लेना चाहता है, वह अज्ञानी गोशीर्ष चंदन को जलाकर उसकी राख ग्रहण करता है।