जो पुत्र—कलत्रादि किसी का भी गर्व नहीं करता और अपने को तृण के समान मानता है, उसे उपशम—भाव होता है। रिद्धीसु होह पणंवा जइ इच्छह अत्तणो लच्छी।
यदि अपनी शोभा चाहते हो तो सम्पत्ति प्राप्त होने पर नम्र बनो। जइया मणु णिग्गंथ जिय, तइया तुहु णिग्गंथु। जइया तुह णिग्गंथ जिय, तो लब्भइ सिव पंथु।।
हे जीव ! जब तेरा मन निग्र्रंथ (रागमुक्त) हो जाएगा, तभी तू सच्चा निग्र्रंथ बनेगा, और जब सच्चा निर्ग्रन्थ बनेगा तभी शिवपंथ मिलेगा।