(जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक के आधार से)
भगवान ऋषभदेव ने माघ कृ. १४ को कैलाशपर्वत से शिवपद अर्थात् मोक्षपद को प्राप्त किया है। इस तिथि को इसीलिए शिवरात्रि व्रत कहते हैं।
व्रत विधि-
माघ कृष्णा चतुर्दशी को उपवास करके जिनमंदिर में भगवान ऋषभदेव का महाभिषेक करके उनकी पूजा करें। पूजन का मंत्र विशेष इस प्रकार है-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं पंचकल्याणसंपूर्ण नवकेवललब्धिसमन्वितश्रीऋषभदेवतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं पंचकल्याणसंपूर्ण नवकेवललब्धिसमन्वितश्रीऋषभदेवतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं पंचकल्याणसंपूर्ण नवकेवललब्धिसमन्वितश्रीऋषभदेवतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं पंचकल्याणसंपूर्णाय नवकेवललब्धिसमन्विताय श्री ऋषभदेवतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। (ऐसे ही चंदन, अक्षत आदि चढ़ाकर पूजन करें)
पुन: व्रत का मंत्र जपें-ॐ ह्रीं अर्हं गोमुखयक्ष-चक्रेश्वरीयक्षीसहिताय श्री ऋषभदेव तीर्थंकराय नम:।
(सुगंधित पुष्पों से या पीले चावल से १०८ बार मंत्र जपकर णमोकार महामंत्र की १ माला जपें)
अनंतर शास्त्र व गुरु की पूजा करके यक्ष-यक्षी आदि को अघ्र्य समर्पित कर पूजा पूर्ण करें। पुन: सहस्रनाम स्तोत्र पढ़ें।
इस दिन रात्रि में पंचस्तोत्र, दशभक्ति आदि पढ़ते हुए भजन आदि पूर्वक ‘रात्रिजागरण’ करें। सायंकाल में मंदिर में १००८ आदि दीपों से आरती करके ‘दीपमालिका’ सजावें।
पाँच वर्ष तक यह व्रत करना है। पुन: उद्यापन में जिनबिम्ब निर्माण कराकर-श्री ऋषभदेव की प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करावें। कैलाशपर्वत की-जहाँ-जहाँ तीर्थों पर कैलाशपर्वत निर्मित हैं उन तीर्थों की वंदना करके प्रयाग-इलाहाबाद पर निर्मित ‘ऋषभदेव तपस्थली’ तीर्थ पर कैलाशपर्वत की १०८ वंदना करके व्रत को पूर्ण करें।