चन्दनामती-पूज्य माताजी के श्रीचरणों में वंदामि! मैं आपसे जैनागम में वर्णित ‘निषीधिका’ शब्द के बारे में कुछ पूछना चाहती हूँ। कृपाकर मेरे कतिपय प्रश्नों का समाधान करने का कष्ट करें।
श्री ज्ञानमती माताजी-ठीक है, जो भी पूछना है पूछो।
चन्दनामती -‘निषीधिका’ शब्द का क्या अर्थ है? क्या आजकल जो शहरों के बाहर नशिया बनी रहती हैं उन्हें शास्त्रीय भाषा में निषीधिका कहते हैं या निषीधिका कोई और होती है?
श्री ज्ञानमती माताजी -हाँ, किसी दृष्टि से उन नशियाओं को भी निषीधिका कह सकते हैं। वैसे शास्त्रीय भाषा में निषीधिका का अर्थ दूसरी तरह से है। श्री गौतम स्वामी कृत रात्रिक एवं दैवसिक प्रतिक्रमण जिसका पाठ प्रतिदिन मुनि और आर्यिकाएं करते हैं उसकी प्रतिक्रमण भक्ति में ‘णमो णिसीहिए णमो णिसीहिए णमो णिसीहिए’ ऐसा तीन बार पाठ आया है। ‘णिसीहियाए’ पाठ भी प्रभाचन्द्राचार्य की टीका में है। उन्होंने णिसीहियाए और णिसीधिए’ दोनों पदों का अर्थ खोला है। उसमें निषीधिका के १७ अर्थ बतलाए हैं। जैसे–
‘णिसीहियाए-निषीधिकाशब्दोऽनेकार्थाभिधायी।
तथाहि-१.जिनसिद्धप्रतिबिंबानि कृत्रिमाकृत्रिमाणि २. तथा तदालय: ३. बुद्धयादिलब्धिसम्पन्न मुनय: ४. तैराश्रितानि क्षेत्राणि ५. अवधिमन:पर्यय-केवलज्ञानिन: ६. ज्ञानोत्पत्ति प्रदेशा: ७. तैराश्रितक्षेत्राणि ८. सिद्ध जीवा: ९.तन्निर्वाणक्षेत्राणि १०. तैराश्रित—आकाशप्रदेशा: ११. सम्यक्त्वादिचतुर्गुण-युक्तास्तपस्विन: १२. तैराश्रितक्षेत्रम् १३. तत्त्यक्तशरीराश्रितप्रदेशा: १४. योगस्थितास्तपस्विन: १५. तैराश्रितक्षेत्रम् १६. तन्मुक्तशरीराश्रितप्रदेशा: १७. त्रिविधपण्डितमरणस्थिता मुनय:।
चन्दनामती -इन सत्तरह भेदों के अर्थ बता दीजिए?
श्री ज्ञानमती माताजी -हाँ इनका अर्थ बताती हूँ। सुनो- १. अरहंत और सिद्धों के कृत्रिम-अकृत्रिम जिनबिंब अर्थात् प्रतिमाओं को निषीधिका कहते हैं। २. उन अरहंत-सिद्धों की प्रतिमाएं जहाँ विराजमान रहती हैं उन मंदिरों को निषीधिका कहते हैं। ३. बुद्धि आदि ऋद्धियों से सम्पन्न-सहित मुनिराजों को निषीधिका अर्थात् निषद्या कहते हैं। ४. उन ऋद्धि सम्पन्न मुनियों के रहने वाले स्थान को भी निषीधिका कहते हैं। ५. अवधि और मन:पर्ययज्ञानी मुनिराज तथा केवलज्ञानी महापुरुषों को निषीधिका कहते हैं। ६. मुनियों को अवधि, मन:पर्यय अथवा केवलज्ञान जिस स्थान पर उत्पन्न होता है उस स्थान को निषद्या कहते हैं। ७. इन तीनों ज्ञानों से युक्त मुनि जहाँ निवास करते हैं उस स्थान को भी निषीधिका कहते हैं। ८. निर्वाणपद को प्राप्त सिद्ध जीवों को निषीधिका कहते हैं। ९. जहाँ से जीव निर्वाणपद प्राप्त करते हैं उसे निषीधिका कहते हैं। जैसे-सम्मेदशिखर, चम्पापुर, पावापुर आदि। १०. सिद्ध जीवों से आश्रित आकाश प्रदेश को निषीधिका कहते हैं। जैसे-सिद्धशिला। ११. सम्यक्त्व आदि चार गुण-सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित्र, तप से युक्त तपस्वियों को भी निषीधिका कहते हैं। १२. इन चार गुणों से युक्त तपस्वियों के रहने वाले स्थान भी निषीधिका कहलाते हैं। १३. उन मुनियों की समाधि वाले स्थान को निषीधिका कहते हैं। १४. आतापन योग, अभ्रावकाश, वृक्षमूल आदि योगों में स्थित तपस्वियों को निषीधिका कहते हैं। १५. मुनिराज जहाँ योग धारण करते हैं उस स्थल को भी निषीधिका कहते हैं। १६. वे योगी जिस स्थान पर शरीर छोड़ते हैं-समाधिमरण को प्राप्त होते हैं उस स्थल को निषीधिका कहते हैं। १७. तीन प्रकार के पण्डित मरण-भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन मरणों में से किसी भी मरण के लिए स्थित मुनिराजों को निषीधिका कहते हैं। ये १७ निषीधिका स्थान-निषद्या स्थल पूज्य होते हैं।
चन्दनामती-तो क्या इन्हीं भेदों के अन्तर्गत दिगम्बर मुनियों के समाधि स्थल को निषद्या मानकर वंदनादि की जाती है?
श्री ज्ञानमती माताजी -हाँ, सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चतुर्गुणों से सम्पन्न ऋषियों ने जहाँ शरीर का त्याग किया है उस स्थल को निषद्या मानने में वर्तमान साधुओं के समाधिस्थल भी निषद्या-निषीधिका कहलाते हैं। साधुओं की नैमित्तिक व्रिेयाओं में निषद्या वंदना नाम की क्रिया भी है जिसमें आचार्य, उपाध्याय, साधु इन तीनों की निषद्याओं की वंदना में अलग-अलग भक्तियाँ पढ़ने का विधान है। जैसे-१. सामान्य साधु की निषद्या वंदना में सिद्धभक्ति, योगभक्ति और शांतिभक्ति पढ़कर समाधिभक्ति पढ़ी जाती है। २. सिद्धांतवेत्ता साधु की निषद्या वंदना में सिद्ध, श्रुत, योग और शांतिभक्ति करके समाधिभक्ति पढ़ते हैं। ३. मूलगुणों के साथ-साथ उत्तरगुणधारी साधु की निषद्या वंदना में सिद्ध, चारित्र, योगि और शांतिभक्तिपूर्वक समाधिभक्ति की जाती है। ४. यदि वे सिद्धांतवेत्ता भी हैं तो सिद्ध, श्रुत, चारित्र, योगि और शांतिभक्ति पढ़कर समाधि भक्ति करते हैं। ५. आचार्य की निषद्या वंदना में सिद्ध, योगि, आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति पुन: समाधिभक्ति। ६. यदि आचार्य सिद्धांतवेत्ता हैं तो सिद्ध, श्रुत, योगि, आचार्य और शांतिभक्ति, पुन: समाधिभक्ति। ७. यदि आचार्य सिद्धांतवेत्ता और उत्तर गुणधारी भी हैं तो उनकी निषद्या वंदना में सिद्ध, श्रुत, चारित्र, योगि, आचार्य और शांतिभक्ति पुन: समाधिभक्ति पढ़कर नमोऽस्तु करते हैं।
चन्दनामती -कहीं-कहीं ऐसा भी देखा है कि समाधि होने के पश्चात् साधुओं के मृत शरीर की वंदना में भी संघस्थ साधुगण कुछ भक्तिपाठ पढ़ते हैं क्या यह भी आगम सम्मत है?
श्री ज्ञानमती माताजी-हाँ, तपस्वियों का मृत शरीर भी निषीधिका कहलाता है अत: उनके शरीर की वंदना में उपर्युक्त क्रम से ही भक्तियाँ पढ़ी जाती हैं। यह सारा वर्णन अनगार धर्मामृत, आचारसार, चारित्रसार आदि आचार ग्रंथों में पाया जाता है। इन अपेक्षाओं से जो शहर के बाहर नशियाएं बनी होती हैं वे भी किसी न किसी साधु की समाधि के निमित्त से अथवा मंदिर आदि होने से निषद्या कहलाती हैं। वर्तमान के तीर्थस्थल, अतिशयक्षेत्र, निर्वाण क्षेत्र आदि सभी स्थान निषीधिका में गर्भित हो जाते हैं। उनमें कल्याणकों के अनुसार जो भक्ति पाठ नैमित्तिक क्रियाओं में आया है उसी क्रमानुसार भक्तियाँ पढ़कर क्षेत्रों की वंदना की जाती है। अब दूसरे पद ‘‘णिसीहिए’’ का अर्थ देखो। श्री प्रभाचन्द्राचार्य की टीका में ‘‘णिसीधिए’’ पाठ है उसका व्युत्पत्ति अर्थ इस प्रकार किया है-
णि त्ति णियमेहिं जुत्तो सि त्ति य सिद्धिं तहा अहिग्गामि।
धि त्ति य धिदिबद्धकओ ए त्ति य जिणसासणे भत्तो।
अर्थात्‘‘णि’’ शब्द का अर्थ है जो नियमरत्नत्रय से युक्त हैं, ‘सि’ शब्द से जो सिद्धि के अभिमुख हैं, ‘धि’ शब्द से धृति-धैर्य गुण से बद्ध है कमर जिनकी अर्थात् जो धैर्य से सम्पन्न हैं एवं ‘ए’ शब्द से जो जिनशासन के भक्त हैं। इन चान विशेषणों से युक्त ऋषि-मुनि आदि के नमस्कार हेतु ‘णिसीधिए’ पद का प्रयोग किया गया है।
चन्दनामती-वंदामि माताजी! मैं लेखनी को यहीं विराम देती हूँ।