भारतीय वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा (साउथ-वेस्ट) का द्वार अत्यंत हानिकारक माना गया है। घर-दुकान, फैक्ट्री, अस्पताल या फार्म-हाउस कुछ भी हो, नैऋत्य दिशा वाले भवन में बड़ी से बड़ी दुर्घटनाएं होती देखी गई हैं। वास्तु विज्ञान के पन्द्रह साल के अनुभव में मैंने इस द्वार वाले भवन में अनर्थ होते देखे हैं। आठ दिशाओं में नैऋत्य दिशा वाले द्वार के भवन सर्वथा त्याज्य हैं। आइये ! ध्यान दें कि वास्तु शास्त्र में नैऋत्य दिशा का क्या महत्व है।
१.दक्षिणी नैऋत्य या पश्चिमी नैऋत्य में चारदीवारी या गृह के लिए द्वार हो तो उस भवन के आवासी अपयश, जेल-यात्रा, दुर्घटनाओं व आत्महत्याओं के शिकार होंगे। इस द्वार को नर्क द्वार या शत्रु द्वार भी कहा जाता है। ऐसे भवन में रहने वालों को हृदय रोग, लकवा व आकस्मिक मौत का शिकार भी होना पड़ता है। यदि इस द्वार के सामने मार्ग हो तो सब कुछ बर्बाद कर देता है। अत: इस द्वार को अन्य दिशाओं में स्थानान्तरित कर देना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो बंदर की मूर्ति, बाग्वा, गणेश जी की मूर्ति, चांदी का तार उपयुक्त स्थान पर लगाकर दोष को कम किया जा सकता है।
२.जिस भूखण्ड के दक्षिण व पश्चिम में मार्ग हो वह नैऋत्य भूखण्ड कहलाता है। यथासंभव ऐसे भूखण्ड से बचना ही समझदारी है।
३.नैऋत्य दिशा में खिड़की या रोशनदान भी नहीं रखने चाहिए। यदि अपरिहार्य हो तो ईशान में इससे ज्यादा खिड़कियाँ व रोशनदान रखने चाहिए, जिससे नैऋत्य दिशा का दोष कम हो जाएगा।
४.नैऋत्य दिशा बढ़ी हुई हो तो भी अदालती व ऋण सम्बन्धी कठिनाइयां पैदा होंगी। पौधों के गमले, पिरामिड आदि लगाकर इस दोष को कम किया जा सकता है।
५.नैऋत्य दिशा के द्वार वाले भवन में यदि नैऋत्य दिशा में ही द्वार के सामने बोरिंग या भूमिगत पानी की टैंक बना हो तो भीषणतम संकट पैदा होते हैं।
६.नैऋत्य दिशा को ऊँचा, ढका हुआ वजनदार रखा जाये तो लाभदायक है।