(१) जन्म-आपका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी (श्रुतपंचमी) को सन् १९५० में हुआ।
(२) जन्म स्थान-टिवैâतनगर (बाराबंकी) उ.प्र.
(३) माता-पिता-माता मोहिनी देवी (आर्यिका श्री रत्नमती माताजी हुईं) एवं पिता श्री छोटेलाल जैन
(४) जन्म नाम-रवीन्द्र कुमार जैन
(५) शिक्षा-लखनऊ यूनिवर्सिटी से बी.ए. तक अध्ययन
(६) भाई बहन-९ बहनें एवं ३ भाई
(७) त्याग की प्रेरणा-सन् १९६८ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा २ वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत
(८) आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत-सन् १९७२ में आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज द्वारा, नागौर (राज.) में
(९) सप्तम प्रतिमा के व्रत एवं गृह त्याग-सन् १९८७ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा
(१०) दशम प्रतिमा एवं पीठाधीश पदारोहण के संस्कार-मगसिर कृष्णा दशमी, २० नवम्बर २०११, पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा
(११) उपाधि अलंकरण-
– ‘कर्मयोगी’ (सन् १९९२ में अ.भा. दि. जैन शास्त्री परिषद द्वारा)
– ‘धर्मसंरक्षणाचार्य’ (सन् १९९६ में मांगीतुंगी-महा. में पंचकल्याणक के अवसर पर वीर सेवा दल द्वारा)
– ‘संस्कृति संरक्षक’ (सन् २००६ में भट्टारकवृंद द्वारा)
– ‘धर्मालंकार’ (सन् १९९६, मांगीतुंगी में)
– ‘संस्कृति सार्थवाह’ (१२ जून २०१०, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में आयोजित ज्ञान ज्योति विद्वत् प्रशिक्षण शिविर के समापन अवसर पर समस्त विद्वत्जनों द्वारा)
– ‘तीर्थोद्धारक’ (३० नवम्बर २०११, औरंगाबाद-महा.में
(१२) विदेश यात्रा-भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष के अन्तर्गत सन् २००० में न्यूयार्क-अमेरिका में आयोजित ‘विश्वशांति शिखर सम्मेलन’ में जैन धर्माचार्य के रूप में विशेष सहभागिता।
(१३) साहित्यिक अवदान-विगत ३८ वर्षों से संस्थान द्वारा प्रकाशित की जाने वाली सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका एवं वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित होने वाले ग्रंथों का सम्पादन कर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में छपवाकर विशेष धर्मप्रचार में महत्वपूर्ण सहयोग।
(१४) विशेष सौभाग्य-आपको पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी जैसी जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी के लघु भ्राता होने का सौभाग्य प्राप्त है। साथ ही आपकी अन्य दो बहनें (आर्यिका श्री अभयमती माताजी एवं चंदनामती जी) भी आर्यिका व्रतों का अनुपालन करते हुए आत्मकल्याण एवं धर्मप्रभावना के कार्य कर रही हैं। इसके साथ ही सबसे महान सौभाग्य यह है कि आपकी जन्म प्रदात्री माँ ने भी आर्यिका दीक्षा धारण करके रत्नमती नाम प्राप्त किया और अपने नारी जीवन को सफल किया, ऐसी पूज्य महान आत्माओं के समान आप भी स्वकल्याण एवं परकल्याण में सदैव तत्पर रहते हैं।