प्रभातेसौ महाध्यान – मुपसंहृत्य धीधन:।
अयमासन्नभव्योस्ति मत्वेति मुनिनायक:१।।१०।।
‘णमो अरिहंताणं’’
अर्थ-वृषभदत्त के यहाँ एक ग्वाल नौकर था। वह वन से अपने घर जा रहा था, समय शीतकाल का था। रास्ते में उसने ऋद्धिधारी मुनिराज के दर्शन किए, वह एक शिला पर ध्यान लगाए बैठे थे। ग्वाले को दया आई, दयावृद्धि से ग्वाले ने मुनि के शरीर पर से ओस साफ किया। सारी रात उनके पाँव दबाता रहा, उनकी वैयावृत्ति करता रहा। सबेरा होते ही मुनिराज का ध्यान पूरा हुआ, उन्होंने आँख उठाकर देखा, तो ग्वाले को पास ही बैठा पाया। मुनिराज ने ग्वाले को निकट भव्य समझकर ‘णमो अरिहंताणं’ मंत्र दिया।
इति दत्वा महामंत्रं तस्मै स्वर्मोक्षदायकम्।
तमेवाशु समुच्चार्य नभोभागे स्वयं गत:।।११।।
अर्थ-मुनिराज ने ग्वाले को निकट भव्य समझकर पंच नमस्कार मंत्र का उपदेश दिया, जो कि स्वर्गमोक्ष की प्राप्ति का कारण है। इसके बाद मुनिराज भी पंचनमस्कार मंत्र का उच्चारण कर आकाश में विहार कर गये।
गोपालस्य तदा तस्य तन्मंत्रस्योपरि स्थिरा।
संजाता महती श्रद्धा सैव लोके सुखप्रदा।।१२।।
अर्थ-ग्वाले की धीरे-धीरे मंत्र पर बहुत श्रद्धा हो गई। वह जब किसी भी काम को करने लगता, तो पहले ही नमस्कार मंत्र का स्मरण कर लिया करता था, जब ग्वाला मंत्र पढ़ता था तो सेठ ने सुना और बोले ये मंत्र कहाँ से लाया, ग्वाले ने सब स्वामी को बता दिया। तब स्वामी ने कहा आज तू कृतार्थ हुआ।
ततोऽसौ सर्वकार्येषु गोपाल: परमादरात्।
पूर्वमेव महामंत्रं तमुच्चरति सुस्फुटम्।।१३।।
अर्थ-सभी कार्य करते समय ग्वाला महामंत्र का स्मरण करता था। एक दिन वह भैंस चराने ले जा रहा था, भैंस नदी पर जाने लगी। ग्वाला भी कूद गया। नुकीला लकड़ा उसके पेट में चुभ गया, वह मर गया। णमोकार मंत्र के प्रभाव से वह मरकर वृषभदत्त के पुत्र हुआ सेठ सुदर्शन! मंत्र के प्रभाव से उसी भव से दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त कर लिया।