(चाल-हे दीनबन्धु….।)
जैवंत अरिहंत देव, सिद्ध अनंता ।
जैवंत सूरि उपाध्याय साधु महंता ।।
जैवंत तीन लोक में ये पंचगुरु हैं ।
जैवंत तीन काल के भी पंचगुरु हैं ।।1।।
अरिहंत देव के हैं छियालीस गुण कहे ।
जिन नाम मात्रा से ही पाप शेष ना रहे ।।
दशजन्म के अतिशय हैं चमत्कार से भरे ।
कैवल्यज्ञान होत ही अतिशय जु दश धरें ।।2।।
चौदह कहे अतिशय हैं देव रचित बताये ।
तीर्थंकरों के ये सभी चैंतीस हैं गाये ।।
हैं आठ प्रातिहार्य जो वैभव विशेष हैं ।
आनंत चतुष्टय सुचार सर्व श्रेष्ठ हैं ।।3।।
जो जन्म मरण आदि दोष आठदश कहे ।
अरिहंत में न हों अतः निर्दोष वे रहें ।।
सर्वज्ञ वीतराग हित के शास्ता हैं जो ।
है बार बार वंदना अरिहंत देव को।।4।।
सिद्धों के आठ गुण प्रधान रूप से गाये ।
जो आठ कर्म के विनाश से हैं बताये ।।
यों तो अनंत गुण समुद्र सर्व सिद्ध हैं ।
उनको है वंदना जो में निमित्त हैं ।।5।।
आचार्य देव के प्रमुख छत्तीस गुण कहे ।
दीक्षादि दे चउसंघ के नायक गुरु रहें ।।
पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय गुरु हैं ।
जो मात्रा पठन पाठनादि में ही निरत हैं ।।6।।
जो आत्मा की साध्ना में लीन रहे हैं ।
वे मूलगुण अट्ठाइसों से साधु कहे हैं ।।
आराधना सुचार की आराध्ना करें ।
हम इन त्रिभेद साधु की उपासना करें ।।7।।
अरिहंत सिद्ध दो सदा आराध्य गुरु कहे ।
त्रयविध मुनी आराधकों की कोटि में रहें ।।
अरिहंत सिद्ध देव हैं शुद्धातमा कहे ।
शुद्धात्म आराधक हैं सूरि स्वात्मा लहें ।।8।।
गुरुदेव उपाध्याय प्रतिपादकों में हैं ।
शुद्धातमा के साधकों को साधु कहे हैं ।।
पांचो ये परम पद में सदा तिष्ठ रहे हैं ।
इस हेतु से परमेष्ठी ये नाम लहे हैं ।।9।।
इन पाँच के हैं इक सौ तेंतालीस गुण कहे ।
इन मूलगुणों से भी संख्यातीत गुण रहें ।।
उत्तर गुणों से युक्त पाँच सुगुरु हमारे ।
जिनका सुनाम मंत्र भवोदधि से उबारे ।।10।।
हे नाथ! इसी हेतु से तुम पास में आया ।
सम्यक्त्व निधी पाय के तुम कीर्ति को गाया ।।
बस एक वीनती पे मेरी ध्यान दीजिये ।
कैवल्य ‘ज्ञानमती’ का ही दान दीजिए ।।11।।
त्रिभुवन के चूड़ामणि, अरहन् सिद्ध महान ।
सूरी पाठक साधु को, नमूँ नमूँ गुणखान ।।12।।