रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
चौबिस तीर्थंकर जिनवर में से, पाँच बालयति कहलाये।
जो बालब्रह्मचारी बनकर, जिनधर्म प्रवर्तक कहलाये।।
श्रीवासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान पद प्रणमन है।
इन पंचबालयतिप्रभु की पूजन, हेतु यहाँ आह्वानन है।।१।।
ॐ ह्रीं पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणंं।
-अष्टक-
क्षीरोदधि का ले मधुर सलिल, कंचन कलशा परिपूर्ण भरा।
पूजन में त्रयधारा देकर, हो शान्त जन्म अरु मरण-जरा।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।१।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन को जितना घिसते हैं, उतनी सुगंध वह देता है।
प्रभु पद में चर्चन करते ही, संसार ताप हर लेता है।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।२।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
चावल को जल से धोने पर, वह शुद्ध धवल अक्षत बनता।
वह अक्षत प्रभु पद रखने से, मानव अक्षय पद को लभता।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।३।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
फूलों में फूल गुलाब-कमल, इनकी सुगंध नहिं छिपती है।
उन सुरभित पुष्पों से पूजन कर, कामव्यथा खुद नशती है।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।४।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
लाडू बरफी पूरनपोली, पकवान्न बहुत खाये जाते।
पूजन में उन्हें चढ़ाने से, तन के क्षुधरोग विनश जाते।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।५।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मंदिर में घृत का दीपक ही, सुरभित प्रकाश पैâलाता है।
उनसे प्रभु की आरति करके, मोहांधकार नश जाता है।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।६।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन कपूर की धूप अग्नि में, खूब जलाई जाती है।
कर्मों की ज्वाला प्रभु पूजन से, स्वयं शान्त हो जाती है।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।७।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर आम फल सेव आदि, खाकर इच्छा नहिं पूर्ण हुई।
पूजन में उसे चढ़ाकर शिवफल, की इच्छा परिपूर्ण हुई।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।८।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंध सुअक्षत पुष्प चरू, दीपक व धूप फल थाल लिया।
‘चन्दनामती’ ले अर्घ्य थाल, जिनवर चरणों में चढ़ा दिया।।
श्री वासुपूज्य-मलि-नेमि-पार्श्व-प्रभु वर्धमान को वन्दन है।
इन पंचबालयति की पूजन, आत्मा को करती पावन है।।९।।
ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
स्वर्ण कलश में नीर ले, डालूँ जल की धार।
पंचबालयति के चरण, करूँ नमन त्रय बार।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
बेला कमल गुलाब के, पुष्प सुगंधित लाय।
पंचबालयति को नमूँ, पुष्पांजली चढ़ाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
प्रत्येक अर्घ्य
चम्पापुर के युवराज प्रभो, श्री वासुपूज्य को नमन करूँ।
चौबिस जिनवर में प्रथम बालयति, के गुण को स्मरण करूँ।।टेक.।।
आषाढ़ कृष्ण छठ गर्भ तिथी, जन्मे फाल्गुन वदि चौदस में।
यह ही तिथि दीक्षा की व माघ-शुक्ला दुतिया केवली बने।।
है मोक्ष तिथी पावन भादों-शुक्ला चौदस को नमन करूँ।
चौबिस जिनवर में प्रथम बालयति, के गुण को स्मरण करूँ।।१।।
चौबिस जिनवर में एकमात्र, श्री वासुपूज्य तीर्थंकर हैं।
जिनके पाँचों कल्याणक से, पावन तीरथ चम्पापुर है।।
मैं अर्घ्य चढ़ा ‘चन्दनामती’, तीर्थंकर तीर्थ को नमन करूँ।
चौबिस जिनवर में प्रथम बालयति, के गुण को स्मरण करूँ।।२।।
ॐ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाणकल्याणकसमन्वितप्रथमबालयतितीर्थंकर श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मिथिलापुरि के नृप कुंभराज, अरु प्रजावती सुत को वंदन।
श्री मल्लिनाथ प्रभु के चरणों में, अर्घ्य चढ़ाकर करूँ नमन।।टेक.।।
थी चैत्र सुदी एकम तिथि जब, जिनवर का गर्भकल्याण हुआ।
मगसिर सुदि ग्यारस जन्म व इस ही, तिथि में तपकल्याण हुआ।।
तिथि पौष कृष्ण दुतिया मल्लि प्रभु, ने केवलश्री किया वरण।
श्री मल्लिनाथ प्रभु के चरणों में, अर्घ्य चढ़ाकर करूँ नमन।।१।।
फाल्गुन सुदि पंचमि मोक्षदिवस, सम्मेदशिखर से कर्म हना।
तीर्थंकर पंचकल्याणकयुत, देते भक्तों का काम बना।।
‘‘चन्दनामती’’ आत्ाम सिद्धी की, इच्छा करता है यह मन।
श्री मल्लिनाथ प्रभु के चरणों में, अर्घ्य चढ़ाकर करूँ नमन।।२।।
ॐ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाणकल्याणकसमन्वितद्वितीयबालयतितीर्थंकर-श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तीर्थंकर प्रभु श्री नेमिनाथ को, अर्घ्य चढ़ाने आये हैं।
वे शौरीपुरि के नाथ तीसरे, बालयती कहलाये हैं।।टेक.।।
कार्तिक सुदि षष्ठी गर्भ बसे, श्रावण सुदि छठ को जन्म लिया।
श्रावण सुदि छठ को दीक्षा ले, वन सहस्राम्र को धन्य किया।।
राजुल को तज श्री ऊर्जयन्तगिरि, पर जा ध्यान लगाये हैं।
वे शौरीपुरि के नाथ तीसरे, बालयती कहलाये हैं।।१।।
आश्विन सुदि एकम ज्ञान, अषाढ़ सुदी सप्तमि शिवपद पाया।
‘‘चन्दनामती’’ त्रय कल्याणक से, ऊर्जयन्तगिरि महकाया।।
माँ शिवा देवि के नंदन को, हम अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।
वे शौरीपुरि के नाथ तीसरे, बालयती कहलाये हैं।।२।।
ॐ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाणकल्याणकसमन्विततृतीयबालयति-श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पार्श्वनाथ प्रभु के चरणों में, सादर शीश झुकाते हैं।
बालयती चौथे जिनवर के, पद में अर्घ्य चढ़ाते हैं।।टेक.।।
वाराणसि नृप विश्वसेन, वामा माता को धन्य किया।
गर्भकल्याणक तिथि वैशाख, वदी दुतिया जगवंद्य किया।।
पौष कृष्ण ग्यारस को जन्म-तप, उत्सव इन्द्र मनाते हैं।
बालयती चौथे जिनवर के, पद में अर्घ्य चढ़ाते हैं।।१।।
चैत्र वदी सुचतुर्थी को, अहिच्छत्र में केवलज्ञान हुआ।
गिरिसम्मेद से श्रावण शुक्ला-सप्तमि को निर्वाण हुआ।।
इसीलिए ‘‘चन्दनामती’’, हम पार्श्वनाथ गुण गाते हैं।
बालयती चौथे जिनवर के, पद में अर्घ्य चढ़ाते हैं।।२।।
ॐ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाणकल्याणकसमन्वितचतुर्थबालयति-श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
महावीर प्रभू के पद में हम, श्रद्धा से अर्घ्य चढ़ाएंगे।
तीर्थंकर बालयती पंचम को, मन मंदिर में बिठाएंगे।।टेक.।।
आषाढ़ सुदी छठ गर्भ तिथी, सित चैत्र सुतेरस जन्म हुआ।
पितु सिद्धारथ माँ त्रिशला सह, पूरा कुण्डलपुर धन्य हुआ।।
मगसिर वदि दशमी दीक्षा ली, बोले नहिं ब्याह रचाएंगे।
तीर्थंकर बालयती पंचम को, मन मंदिर में बिठाएंगे।।१।।
वैशाख सुदी दशमी केवलज्ञानी बन अधर विहार किया।
कार्तिक कृष्णा मावस को पावापुरि से शिवपद प्राप्त किया।।
‘‘चन्दनामती’’ हम वीर प्रभू की, पूजा नित्य रचाएंगे।
तीर्थंकर बालयती पंचम को, मन मंदिर में बिठाएंगे।।२।।
ॐ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाणकल्याणकसमन्वितपंचमबालयतितीर्थंकर-श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्यमंत्र–ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यमल्लिनाथनेमिनाथपार्श्वनाथमहावीरपंचबाल- यतितीर्थंकरेभ्यो नम:। (९, २७ अथवा १०८ बार जपें)
जय जय जय चौबिस तीर्थंकर के, श्रीचरणों में करूँ नमन।
जय जय जय सिद्ध शिला पर राजित, सब जिनवर को करूँ नमन।।
जय वर्तमान के चौबिस जिन में, पंचबालयति को वन्दन।
जय पंचबालयति के पद में, जयमाला अर्घ्य करूँ अर्पण।।१।।
वसुपूज्य पिता माँ जयावती के, वासुपूज्य सुत कहलाए।
शत इन्द्र पूज्य प्रभु वासुपूज्य, बारहवें जिनवर बतलाए।।
आयू बाहत्तर लाख वर्ष, तनु लालवर्ण तीर्थंकर का।
था चिन्ह महिष सत्तर धनु ऊँचा, तन था प्रथम बालयति का।।२।।
मिथिलापुरि के युवराज मल्लिप्रभु, उन्निसवें तीर्थंकर हैं।
पचपन हज्जार वरष आयू, पच्चीस धनुष तनु तुंग कहे।।
है चिन्ह कलश तन स्वर्ण सदृश, स्वर्णिम आभा को पैâलाते।
इन दुतिय बालयति की भक्ती, करके भाक्तिक जन हरषाते।।३।।
बाइसवें जिनवर नेमिनाथ का, श्यामवर्ण तन सुन्दर था।
निज ब्याह समय वैराग्य लिया, स्वीकार नहीं पशुबंधन था।।
आयू इक सहस वर्ष एवं, चालीस हाथ तन तुंग कहा।
श्रीकृष्ण तथा बलदेव पूज्य, प्रभु चिन्ह तुम्हारा शंख रहा।।४।।
तेइसवें तीर्थंकर पारस, उपसर्ग विजेता कहलाते।
सौ वर्ष आयु नौ हाथ काय, फण सर्प सहित जाने जाते।।
मरकतमणि के सम हरित काययुत, सुन्दरता में अनुपम थे।
कमठासुर के कष्टों को सहने, में प्रभु तुम ही सक्षम थे।।५।।
महावीर वीर सन्मति एवं, प्रभु वर्धमान अतिवीर कहे।
इन पाँच नाम से युक्त जिनेश्वर, सात हाथ तनु तुंग रहे।।
आयू बाहत्तर वर्ष काय का, वर्ण स्वर्णसम मन भाया।
चन्दनबाला का कष्ट हरा, तीर्थंकर बन शिवपद पाया।।६।।
ये पाँचों तीर्थंकर जिनवर ही, पंचबालयति कहलाए।
हम ब्रह्मचर्य पालन हेतू, इन सबको निज मन में ध्याएँ।।
पूर्णार्घ्य चढ़ाकर चरणों में, ‘चन्दनामती’ यह अभिलाषा।
कब बालयती बन तप करके, पा जाऊँ शिवपुर का वासा।।७।।
ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-मल्लिनाथ-नेमिनाथ-पार्श्वनाथ-महावीर पंचबालयति-तीर्थंकरेभ्य: जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
सोरठा– बालयती जिनराज, पद की जो पूजा करें।
पाकर निज साम्राज, अतुल ऋद्धि सिद्धी वरें।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।।