हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।टेक.।।
है जीव से भिन्न अजीव तत्व, जो पाँच भेद युत कहलाता।
पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल से, उसको पहचाना जाता।।
इनमें से बस पुद्गल मूर्तिक, अरु पाँच अमूर्तिक कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।१।।
गागर में सागर के समान, तत्त्वार्थसूत्र की रचना है।
इसकी पंचम अध्याय में गुरुवर, उमास्वामी का कहना है।।
ज्ञानी इन सबको पृथक् समझ, निज आतम अनुभव कर पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।२।।
परमाणु और स्कन्धों में, पुद्गल की शक्ति समाहित है।
आधुनिक आज युग में पुद्गल, पर शोध करें वैज्ञानिक हैं।।
‘‘चंदनामती’’ चेतन व अचेतन, शक्ति सूत्र ये बतलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।३।।