-दोहा-
प्रभु अनंत गुण के धनी, शुद्ध सिद्ध भगवंत।
मुख्य आठ गुण को नमूँ, पुष्पांजलि विकिरंत।।
अथ मण्डलस्योपरि पञ्चम कोष्ठकस्थाने पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
तर्ज—आवो बच्चों तुम्हें दिखायें…
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं, जय जय आदिजिनं।
जय जय आदिजिनं, जय जय आदिजिनं।।टेक.।।
दर्शनमोहनीय है त्रयविध, चार अनंतानूबंधी।
मोहकर्म को नाश जिन्होंने, पाया क्षायिक समकित भी।।
इस गुण से अगणित गुण पाये, उन गुणमणि श्रीमान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।१।।
ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय सम्यक्त्वगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
ज्ञानावरण कर्म को नाशा, पूर्णज्ञान प्रगटाया है।
युगपत् तीन लोक त्रयकालिक, जान ज्ञान फल पाया है।।
शत इन्द्रों से वंद्य सदा जो, उन आदर्श महान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।२।।
ॐ ह्रीं ज्ञानावरणकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय ज्ञानगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
सर्व दर्शनावरण घात कर, केवल दर्शन प्रगट किया।
युगपत् तीन लोक त्रैकालिक, सब पदार्थ को देख लिया।।
जिनको गणधर गुरु भी ध्याते, उन दृष्टा भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।३।।
ॐ ह्रीं दर्शनावरणकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय दर्शनगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
अंतराय शत्रू के विजयी, शक्ति अनंती प्रगटाई।
काल अनंतानंते तक भी, तिष्ठ रहे प्रभु श्रम नाहीं।।
हम भी करते नित उपासना, अनंत शक्तीमान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।४।।
ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय वीर्यगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
सूक्ष्मत्व गुण पाया जिनने, नाम कर्म का नाश किया।
सूक्ष्म और अंतरित दूरवर्ती पदार्थ को जान लिया।।
योगीश्वर के ध्यानगम्य जो, अचिन्त्य महिमावान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।५।।
ॐ ह्रीं ्नाामकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय सूक्ष्मगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
आयु कर्म से शून्य जिन्होंने, अवगाहन गुण पाया है।
जिनमें सिद्ध अनंतानंतों ने, अवगाहन पाया है।।
भविजन कमल खिलाते हैं जो, उन अतुल्य भास्वान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।६।।
ॐ ह्रीं आयुकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय अवगाहन-गुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
ऊँच नीच विध गोत्रकर्म को, ध्यान अग्नि में भस्म किया।
अगुरुलघु गुण से अनंत युग, तक निज में विश्राम किया।।
त्रिभुवन के गुरु माने हैं जो, उन अविचल गुणवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।७।।
ॐ ह्रीं गोत्रकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय अगुरुलघुगुणसहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
सात असाता द्विविध वेदनी, ध्यान अग्नि से जला दिया।
अव्याबाध सुखामृत पीकर, निज से निज को तृप्त किया।।
भक्ति नाव से भव्य तिरें जो, उन शुद्धात्मा महान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।८।।
ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय अव्याबाधगुण-सहिताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य-
आओ हम सब करें अर्चना, ऋषभदेव भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।
शुक्लध्यान की अग्नि जलाकर, आठ कर्म को भस्म किया।
केवलज्ञान सूर्य को पाकर, आठ गुणों को व्यक्त किया।।
सिद्धों का जो वंदन करते, मिले राह कल्याण की।
सिद्ध शिला पर तिष्ठ रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
जय जय आदिजिनं-४।।१।।
ॐ ह्रीं अष्टकर्मविघातकाय तथैवकर्मनाशनशक्तिप्रदाय सम्यक्त्वादिप्रमुख-अष्टसिद्धगुणसमन्वित श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य—ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवाय सर्वसिद्धिकराय सर्वसौख्यं कुरु कुरु ह्रीं नम:। (सुगंधित पुष्पों से या लवंग से १०८ बार जाप्य करें।)