तर्ज-आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं…….
आवो पूजन करें सभी, श्रेयांस सिन्धु आचार्य की।
शांतिसिंधु की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य की।। वन्दे गुरुवरम्-२।
जिनकी पूजन से चरित्र निर्माण प्रेरणा मिलती है।
जिनके वन्दन से आत्मा की सम्यक् ज्योति निखरती है।।
आह्वानन स्थापन कर लें परमेष्ठी आचार्य की।
शांति सिंधु की परम्परा के पंचमपट्टाचार्य की।। वन्दे गुरुवरम्-२।।१।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागरमुनीन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागरमुनीन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागरमुनीन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
-अष्टक-
तर्ज-हे वीर तुम्हारे द्वारे पर…………
गुरुदेव तुम्हारे चरणों की हम पूजा करने आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आये हैं।।
जग में तो केवल जन्म मरण का ताप सताया करता है।
उसमें प्राणी निज कर्मों का नित जाल बिछाया करता है।।
इन रोगों की उपशांति हेतु जलधारा करने आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।१।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
बहुतेक सुगंधित गंधों से मानव निज को महकाते हैं।
मुनिवर निज संयम की सुगंध सारे जग में पैâलाते हैं।।
आचार्य प्रवर तव चरणों में हम चन्दन लेकर आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।२।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्र्यश्रीश्रेयांससागराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षणभंगुर जग के वैभव में हम फूले नहीं समाते हैं।
मुनिवर उस वैभव को तजकर शिवपथ पर कदम बढ़ाते हैं।।
आचार्य प्रवर तव चरणों में हम अक्षत लेकर आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।३।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
इन्द्रिय विषयों में फंसकर भी निंह दास बने उन विषयों के।
मन में विराग के आते ही तज दिया मोह उन विषयों से।।
बस इसीलिए तव चरणों में पुष्पों की माला लाए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।४।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
जिह्वा इन्द्रिय के विषयों पर नहिं सबका वश चल सकता है।
तुम सब तपसी बन करके ही सारा अनर्थ मिट सकता है।।
रत्नत्रय साधन में निमित्त नैवेद्य चढ़ाने आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।५।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अगणित दीपक भी जल करके मन का न अंधेरा भगा सके।
वैराग्य ज्ञान की ज्योति ही मिथ्यात्व तिमिर को भगा सके।।
निज ज्ञान प्राप्ति हेतू गुरुवर हम दीप सजाकर लाए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।६।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्मों के संग रहते रहते निज को पहचान न पाए हम।
तुमने कर्मों से लड़ने का पुरुषार्थ किया बन साधु स्वयं।।
यह कर्मशृंखला दहन हेतु हम धूप जलाने आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।७।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल के लालच में चक्रवर्ती भी फंसा देव के चक्कर में।
सम्पूर्ण परिग्रह रहित मुनी नहिं चाह करें नश्वर फल में।।
अविनश्वर पद के हेतु फलों का थाल सजाकर लाए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।८।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर के लघु नंदन मुनिवर जग को संदेश सुनाते हैं।
बिन बोले ही निज काया से शिवपथ की राह दिखाते हैं।।
श्रेयांससिंधु आचार्यप्रवर को अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।
तेरे तप की पावनता से मन पावन करने आए हैं।।९।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तर्ज-साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल…………
तव ज्ञानगंगा की पवित्र धार जो बही।
उससे पवित्र वर्तमान की हुई मही।।
त्रयरत्न प्राप्ति हेतु तीन धार में करूँ।
आचार्य प्रवर के चरण जलधार मैं करूँ।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
श्री शांतिसिंधु के प्रथम उद्यान में मुनि तुम।
इस पुष्पवाटिका के ही तुम पुष्प हो पंचम।।
यह सत्य की सुगंध का विस्तार करेगा।
लघु पुष्प यह मेरा भला क्या काम करेगा।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-नागिन धुन……
जय जय गुरुवर, आचार्य प्रवर, शुभ मंगल अर्घ्य सजाय के,
हम द्वार तिहारे आये हैं।।
महाराष्ट्र के ‘‘वीर’’ ग्राम में, बज रही जन्म बधाई।
लालचन्द्र पितु कुन्दनबाई, माता भी हरषाईं।। गुरु जी,
कुल धन्य हुआ, शिशु जन्म हुआ, श्री चन्द्रसिंधु परिवार में,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।१।।
फूलचंद्र ने लाड प्यार में शैशवकाल बिताया।
परिणय का उपहार लिए नव यौवन काल भी आया।।गुरु जी..
संसार बसा, कुछ स्वांग रचा, फिर चले विरागी राह पे,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।२।।
एक बार शिवसागर जी का संघ क्षेत्र पर आया।
महावीर जी में सबने तब मेला खूब मनाया।। गुरु जी..
दम्पति आए, दर्शन पाए, पग बढ़े वहीं शिवद्वार पें,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।३।।
पत्नी संग श्रीफूलचंद्र ने महाव्रत दीक्षा धारी।
माता भी बन गईं आर्यिका हरषें सब नर नारी।। गुरु जी..
श्रेयांससिंधु, श्रेयांसमती, आदर्श बने संसार के,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।४।।
श्री चारित्रचक्रवर्ती की बगिया के रखवाले।
पंचम पट्टाचार्य बनें ये छत्तिस गुण को पालें।। गुरु जी..
श्रेयांससिंधु, बन जगत बंधु, कर दिया स्वपर कल्याण है,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।५।।
गोमटेश की यात्रा हेतू संघ विहार हुआ था।
राजस्थान बांसवाड़ा में मरण समाधि हुआ था।। गुरु जी..
नश्वर काया, तजकर पाया, तुमने निज लक्ष्य महान है,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।६।।
उन्निस फरवरि सन् उन्निस सौ बानवे की संध्या थी।
फागुन कृष्णा संवत बीस सौ अड़तालिस की संध्या थी।
श्री श्रेयांससिंधु मुनिवर की कठिन तपश्चर्या थी।। गुरु जी..
शिवपथरागी, जग वैरागी, को वंदन शत शत बार है,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।७।।
मुनिवर की गुणमाल गानकर, यही याचना करते।
कहे ‘‘चन्दनामती’’ त्याग की गरिमा मुझमें भर दे।। गुरु जी..
ज्ञानीध्यानी, श्रुतविज्ञानी, जहाँ समयसार साकार है,
हम द्वार तिहारे आए हैं।।८।।
ॐ ह्रीं पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागराय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
पंचम पट्टाचार्य को, जो पूजें धर प्रीति।
महाव्रती बनकर करें, निज आतम से प्रीत।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।