अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पाँच परमेष्ठी हैं इनको नमस्कार करने से पापों का नाश होता है।
अरिहंत– जिन्होंने चार घाति या कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमे छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं, वे अरिहंत परमेष्ठियों कहलाते हैं।
सिद्ध– जिन्होंने आठों कर्मों का नाश कर दिया है और आठ गुणों से सहित हैं, लोक के अग्रभाग पर विराजमान हैं, वे सिद्ध परमेष्ठियों कहलाते हैं।
आचार्य– जिनमें छत्तीस मूलगुण होते हैं, जो संघ के नायक हैं और शिष्यों को शिक्षा, दीक्षा, प्रायश्चित्तादि देते हैं, वे आचार्य परमेष्ठियों कहलाते हैं।
उपाध्याय– जिन्हें ग्यारह अंग और चौदह पूर्वों का या उस समय के सभी प्रमुख शास्त्रों का ज्ञान है मुनि संघ में साधुओं को पढ़ाते हें, वे उपाध्याय परमेष्ठियों कहलाते हैं।
साधु– जो अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हैं, सदा रत्नत्रय के साधन हेतु ध्यान और अध्ययन में लगे रहते हैं, वे साधु परमेष्ठियों कहलाते हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीनों ही दिगम्बर वेषधारी मुनि होते हैं।
यहाँ तक आठ मूलगुणों का विशेष वर्णन हुआ है।