[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == परभाव : == एगो मे सासदो अप्पा, णाणदंसणलक्खणो। ऐसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा।।
—नियमसार : १०२
ज्ञान—दर्शन स्वरूप मेरा आत्मा ही शाश्वत तत्त्व है, इसमें भिन्न जितने भी (रागद्वेष, कर्म, शरीर आदि) भाव हैं, वे सब संयोगजन्य बाह्य भाव हैं, अत: वे मेरे नहीं है।