१. जो साधु पुरूष, तीनों (मन, वचन काय) योगों से; दोनों प्रकार के अंतरंग एवं बहिरंग परिग्रहों को त्यागकर, इन्द्रिय विषयभोगों से रागरहित होकर ज्ञान को निर्मल रखते हैं तथा खड़े होकर आहार लेते हैं उन्हीं मुनियों को सम्यक्त्व होता है।
२. सम्यक्दर्शन पूर्वक ही ज्ञान सम्यक् सत्यस्वरूप को प्राप्त होता है। सम्यक् सत्य ज्ञान से ही समस्त जीव अजीव पदार्थों को, सत्य स्वरूप से जाना जाता है। ज्ञान से जीव अजीव पदार्थों के भेद—अन्तर को जान लेने पर निज आत्मा के (कल्याण) हित अहित को जाना जाता है।