१. जो मिथ्यामती स्वयं सम्यक्दर्शन से भ्रष्ट होकर, दूसरे सम्यक्तवधारी पुरूषों से अपने चरण पड़वाते हैं। दर्शनधर्म से पतित वह पुरूष अगले जन्मों में लूले (लंगड़े) गूंगे होते हैं। उन्हें (दर्शन, ज्ञान, चारित्र से) बोधिज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त होना दुर्लभ है।
२. जो पुरूष जानते हुए भी, लज्जा गर्व एवं भय के कारण (मोही, रागी, द्वेषी) मिथ्यादृष्टियों के चरणों में पड़ते हैं। उन्हें विनय भाव से नमन करते हैं। मिथ्यात्व पाप की अनुमोदना करने वाले होने से उन्हें भी बोधिज्ञान (केवलज्ञान ) नहीं हो सकता।