जो आदि, मध्य और अन्त से रहित है, जो केवल एकप्रदेशी है—जिसके दो आदि प्रदेश नहीं हैं और जिसे इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, वह विभागविहीन द्रव्य परमाणु है। वर्णरसगन्धस्पर्शे पूरणगलनानि सर्वकाले। स्कन्धा इव कुर्वन्त: परमाणव: पुद्गला: तस्मात्।।
जिसमें पूरण—गलन की क्रिया होती है अर्थात् जो टूटता–जुड़ता रहता है, वह पुद्गल है। स्वंâध की भाँति परमाणु के भी स्पर्श, रस, गंध, वर्ण गुणों में सदा पूरण—गलन क्रिया होती रहती है, इसलिए परमाणु भी पुद्गल है। अप्रदेश: परमाणु: प्रदेशमात्रश्च स्वयमशब्दो य:। स्निग्धो व रुक्षो वा, द्विप्रदेशादित्वमनुभवति।।
(लोक में व्याप्त) पुद्गल परमाणु एकप्रदेशी है—दो आदि प्रदेशी नहीं है, तथा वह शब्दरूप नहीं है, फिर भी उसमें स्निग्ध व रुक्ष स्पर्श का ऐसा गुण है कि एक परमाणु दूसरे परमाणुओं से बंधने या जुड़ने या मिलने पर दो प्रदेशी आदि स्कन्ध का रूप धारण कर लेते हैं। अत्तादि अत्तमज्झं अत्तंतं णेव इंदिये गेज्झं। अविभागी जं दव्वं परमाणू तं वियाणाहि।।
परमाणु उस द्रव्य को जानें, जिसका खंडित होना संभव नहीं। वह अपना प्रारंभ, मध्य और अंत स्वयं हुआ करता है। उसे इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता।