पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी की प्रखर मेधा से उद्भूत हिन्दी गद्यात्मक एवं पद्यात्मक साहित्य से तो सामान्यतया सभी भली—भाँति परिचित हैं, तथापि अंग्रेजी भाषा में लिखित पूज्य माताजी की कृतियों का परिचय भी जनसाधारण को ज्ञात हो सके, इसी हेतु से इस आलेख का यहाँ प्रस्तुतीकरण किया जा रहा है।
पूज्य माताजी ने अपनी तीव्र अभिरुचि एवं अभ्यास के आधार पर तथा अपनी गुरू पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की सतत प्रेरणा प्राप्त करके अंग्रेजी भाषा के अपने ज्ञान को संघ में रहकर ही निरन्तर परिर्मािजत किया और यही कारण है कि उच्च अकादमिक शिक्षा की अनुपस्थिति में भी उन्होंने अंग्रेजी भाषा में काव्य लेखन की प्रतिभा को क्रमश: विकसित किया एवं कतिपय पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद एवं सम्पादन भी किया।
पूज्य माताजी द्वारा सृजित एवं सम्पादित अंग्रेजी कृतियाँ इस प्रकार हैं— 1. Rishabhdev Nirvan Mahotsav 2. Jain Dharma & Lord Rishabhdeva 3. An Introduction of Ganini Pramukh Shri Gyanmati Mataji 4. Bhagwan Mahaveer (A Pictorial Story) 5. Bhagwan Parshvanath (A Pictorial Story) 6. Jambuswami Charitra (English) 7. Jain Worship 8. Dashlakshan Pooja 9. Lord Mahavir Hindi-English Jain Dictionary (Compilation & Vachna) 10.Jain Bharati (Vachna-Pramukh & Editing-Guidance) आइये ! जानें उपरोक्त कृतियों की विषय—वस्तु के प्रमुख बिन्दुओं को—
सन् २००० में ‘भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव’ के अवसर पर प्रकाशित इस अंग्रेजी पुस्तक में आदिब्रह्मा प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सम्पूर्ण जीवनवृत्त को सुन्दरता से प्रस्तुत करने के साथ—साथ पूज्य चंदनामती माताजी ने ‘चक्रवर्ती भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा’, ‘भगवान महावीर जैनधर्म के संस्थापक नहीं थे’, ‘भगवान ऋषभदेव की ऐतिहासिक प्रतिमाएँ कहाँ—कहाँ विराजमान हैं? इत्यादि तथ्यों को भी विशेष रूप से इंगित किया है।
निर्वाण महामहोत्सव के अवसर पर प्रकाशन के कारण इस पुस्तिका में सन् २००० में राजधानी दिल्ली में आयोजित हुए कार्यक्रम की रूपरेखा, त्रिकाल चौबीसी की रत्नप्रतिमाओं की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, ऋषभदेव मेला इत्यादि का वर्णन भी प्रस्तुत किया गया है। जैनधर्म की प्राचीनता एवं इस युग में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव द्वारा जैनधर्म के प्रवर्तन का वर्णन इस कृति की प्रमुख विशेषता है।
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘जैनधर्म और भगवान ऋषभदेव’ के अंग्रेजी अनुवाद के रूप में इस पुस्तक का प्रस्तुतीकरण पूज्य चन्दनामती माताजी द्वारा किया गया है। सन् २००० में ‘भगवान ऋषभदेव निर्वाण महामहोत्सव’ के अवसर पर ही यह कृति प्रकाशित की गयी थी।
इस पुस्तिका में तीन लोक के तीन भागों—अधो, मध्य, ऊध्र्व लोकों का परिचय कराते हुए विशेष रूप से मध्यलोक में अवस्थित जम्बूद्वीप, विदेह क्षेत्र, १७० कर्मभूमियाँ, १७० तीर्थंकर, षटकाल परिवर्तन के क्षेत्र, प्रथम कर्मभूमि, भोगभूमि, कुलकरों की उत्पत्ति, अयोध्या नगरी की रचना एवं भगवान ऋषभदेव के पाँचों कल्याणकों का क्रमिक विवरण सुन्दर भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में जैनधर्म की मूलभूत अवधारणा को हृदयंगम करने हेतु यह अंग्रेजी पुस्तिका अत्यन्त उपयोगी बन गयी है।
इस पुस्तिका में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के बचपन में ही वैराग्य के अंकुरण, ‘पद्मनंदिपंचिंवशतिका ग्रंथ’ के स्वाध्याय द्वारा प्राप्त संस्कारों के आधार पर क्रमश: क्षुल्लिका दीक्षा, आर्यिका दीक्षा, आर्यिका चर्या के २८ मूलगुणों, पूज्य माताजी द्वारा ग्रन्थ लेखन के प्रारम्भ, तीर्थ विकास की प्रेरणाएँ तथा विविध धर्मप्रभावनात्मक कार्यों का संक्षिप्त परन्तु प्रभावी विवरण अंग्रेजी भाषा में किया गया है।
अंग्रेजी भाषा आज के युवावर्ग की भाषा है, अत: किसी भी कृति को अधिकाधिक व्यापक बनाने हेतु इस भाषा में किया गया लेखन स्वत: ही उपयोगी हो जाता है।
सन् २००० में राजधानी दिल्ली में ‘भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव’ के अवसर पर इस पुस्तिका का लेखन पूज्य चन्दनामती माताजी द्वारा किया गया एवं जैन—जैनेतर समाज में इसे वितरित किया गया।
भाषा एवं विषय—वस्तु के आधार पर यह पुस्तक काफी रुचिकर बन गयी है तथा पाठक को एक बार प्रारम्भ करने पर पूर्ण पढ़ने हेतु ही प्रेरित करती है।
भगवान महावीर की जन्मभूमि— कुण्डलपुर (जिला—नालंदा, ाqबहार) के नवविकास के अवसर पर सन् २००४ में पूज्य चन्दनामती माताजी द्वारा भगवान महावीर के गर्भ—जन्म कल्याणक से लेकर निर्वाण कल्याणक तक की समस्त घटनाओं को १८ चित्रों के माध्यम से हिन्दी एवं अंग्रेजी व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया।
वस्तुत: चित्रकथा की विधा में यह प्रस्तुतीकरण चित्र एवं अंग्रेजी भाषा होने के कारण आज के बालकों एवं युवाओं के लिए अत्यन्त आकर्षक बन गया। सर्वप्रथम इसका प्रकाशन ‘सम्यग्ज्ञान’ एवं ‘कुण्डलपुर अभिनन्दन ग्रंथ’ में किया गया था। स्वतन्त्र रूप से अप्रकाशित यह कृति शीघ्र ही प्रकाशन में आकर जनमानस को उपलब्ध होना अपेक्षित है।
सन् २००७ में पूज्य चन्दनामती माताजी द्वारा हिन्दी एवं अंग्रेजी में लिखित २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के दश पूर्व भवों की सचित्र झाँकी पुस्तक रूप प्रकाशित की गयी। रंगीन चित्रों के माध्यम से भगवान पार्श्वनाथ बनने के दशभव पूर्व से मरुभूति के जीव का क्रमिक उत्थान एवं कमठ के जीव का वैरभाव के निमित्त से पुन: पुन: निम्न गतियों में परिभ्रमण इस कृति में परिलक्षित किया गया है।
अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुतीकरण होने से यह सत्य कथानक कहीं अधिक व्यापक एवं प्रभावी बन गया है। कथानक के अंत में भगवान पार्श्वनाथ के पाँचों कल्याणकों का सजीव विवरण भी इसमें प्रस्तुत किया गया है। वस्तुत: चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत कोई भी सामग्री पाठक के हृदय—पटल पर सहज ही अंकित हो जाती है, अत: उपरोक्त चित्रकथाओं को जैन—जैनेतर समाज में बहुतायत से सुलभ कराया जाना चाहिए।
वर्तमान युग के अंतिम केवली ‘श्री जम्बूस्वामी’ के पूर्व भवों के कथानक के साथ-साथ जम्बूस्वामी के भव में माता-पिता के अत्यंत अनुरोध पर विवाह, रात्रि में चार नवविवाहिता पत्नियों से वैराग्यमयी वार्तालाप, विद्युच्चोर का आगमन आदि सम्पूर्ण रोमांचक कथानक को पूज्य चंदनामती माताजी ने अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत किया, जिसका प्रकाशन ‘सम्यग्ज्ञान’ मासिक पत्रिका में सन् २०१२ में किया गया। सरल अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत यह कथानक अत्यंत प्रेरणास्पद एवं मार्मिक है।
जनमानस में व्यापकता हेतु इस कृति का भी अलग से प्रकाशन अपेक्षित है।
सन् २००९ में प्रकाशित अंग्रेजी पूजाओं की यह पुस्तक पूज्य चन्दनामती माताजी की एक उल्लेखनीय एवं महत्त्वपूर्ण कृति है। कई वर्षों तक पूज्य माताजी अपनी भावनाओं को अंग्रेजी पद्यों के रूप में पिरोती रहीं; कभी पूजन, कभी भजन, कभी बारह भावना, कभी तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना इत्यादि रूपों में उनकी प्रतिभा ने साकार रूप लिया, पुन: उनकी विविध अंग्रेजी काव्यात्मक रचनाओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करके इसे जनसाधारण के लिए उपलब्ध कराया गया।
अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ने वाले बालक—बालिकाएं आजकल हिन्दी शब्दों का अर्थ समझने में अक्सर स्वयं को असमर्थ पाते हैं, तब प्राय: उनके माता—पिता अंग्रेजी भाषा में र्धािमक सामग्री की अपेक्षा रखते हैं, इस शृंखला में Jain Worship पुस्तक पूजा करने हेतु जैन बालक—बालिकाओं एवं युवाओं के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इस पुस्तक में पूजा प्रारम्भ करने की प्रचलित विधि का रोमन अंग्रेजी में रूपान्तरण करने के पश्चात् भगवान ऋषभदेव, भगवान महावीर स्वामी एवं तेरहद्वीप रचना की अंग्रेजी पूजाओं को प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक पूजा में इंगित तर्ज के आधार पर पद्यों को गाने से विशेष आनन्द की अनुभूति भक्त को प्राप्त होती है।
दशलक्षण महापर्व में संगीत के साथ जब स्वयं पूज्य चन्दनामती माताजी पधारे हुए सैकड़ों भक्तों के मध्य इन पूजाओं को सम्पन्न कराती हैं, तब भक्तों का आनन्द कई गुणा वृिंद्धगत हो जाता है एवं अंग्रेजी पूजन कराने के लिए उनका विशेष आग्रह प्रतिवर्ष दृष्टिगत होता ही है। यद्यपि पद्यों की पूर्णता में अंग्रेजी व्याकरण का कहीं—कहीं स्खलन भी हुआ है, परन्तु पंक्तियों का भाव पाठक को सहज ही उपलब्ध हो जाता है।
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की अंग्रेजी पूजन एवं पूजन समापन की विधि का रोमन अंग्रेजी में रूपान्तरण भी पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। पूज्य माताजी द्वारा अंग्रेजी भाषा में जिनेन्द्र भगवान की पूजन नई पीढ़ी हेतु उपलब्ध कराने का यह अभिनव प्रयास स्तुत्य है।
Jain Worship पुस्तक में अंग्रेजी पूजाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी बारह भावना, अंग्रेजी तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना, कतिपय अंग्रेजी भजन एवं अंत में ॐ मंत्र के ध्यान की विधि (अंग्रेजी) भी विशेष दृष्टव्य है। पूज्य चन्दनामती माताजी के मुख से उच्चारण के पश्चात् अंग्रेजी बारह भावना की पंक्तियाँ अक्सर लोग गुनगुनाने लगते हैं—
(Tune-Chalat Musafir Moh liyo Re………) I’m praying to you Jinvar deva ! I’m praying to you Praying to you, I’m saying to you-2 I’m praying to you Jinvar deva. I’m ………….. I did not know about my soul, I could not think about myself. so tell me that path deva……….. I’m praying to you………… पूज्य माताजी के कतिपय अंग्रेजी भजन भी जनसाधारण में प्रसिद्ध हुए हैं, यथा— (Tune – Kabhi Too………..) I will go to Pavapur, there is Temple Jalmandir After offering Ladu I will celebrale Diwali Be Happy Diwali, Be Happy Diwali………..
पूज्य माताजी की जनोपयोगी अंग्रेजी लेखनी इसी प्रकार क्रमश: नित—प्रति परिर्मािजत होते हुए जिनभक्ति का स्तोत्र भविष्य में भी प्रवाहित करती रहेगी, ऐसा पूर्ण विश्वास एवं मंगल कामना है।
सन् २०११ में इस लघु पुस्तिका का प्रकाशन दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर द्वारा किया गया। इस पुस्तिका में पूज्य चन्दनामती माताजी ने दशलक्षण—धर्म की बहुत ही सुन्दर एवं सरल पूजन अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत की है।
लयबद्ध रूप से इस पूजा को संगीत के साथ करने पर अद्भुत आनन्द की प्राप्ति होती है; दशलक्षण पर्व में जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर पधारे सैकड़ों श्रद्धालु इस तथ्य के प्रत्यक्ष प्रमाण रहते हैं। कृपया कतिपय पंक्तियाँ देखें—
(Tune – Kya Khoob Dikhti Ho……….. We can get peace in the world, By worship to the God. We can get the happiness, By prayer to the God. Right path of Salvation is the worship to the God. We can get …………………
अंग्रेजी भाषा का अधिक ज्ञान न रखने वाले श्रावक भी दशलक्षण पर्व में इस पूजा के आयोजन में अत्यन्त र्हिषत दृष्टिगत हुआ करते हैं। दशों धर्मों के अलग—अलग अघ्र्यों के उपरान्त सुन्दर जयमाला के साथ पूजा का समापन किया गया है। दशलक्षण—पूजा (अंग्रेजी) के पश्चात् इस लघु पुस्तिका में हस्तिनापुर में जन्में भगवान शांतिनाथ—वुंâथुनाथ एवं अरहनाथ स्वामी की सामूहिक अंग्रेजी पूजन’ के नाम से प्रस्तुत की गयी है।
यह पूजा भी सरल शब्दों में लिखी गयी आध्यात्मिक आनन्द प्रदान करने वाली रचना है, अष्ट द्रव्य से पूजन के पश्चात् जयमाला में तीनों भगवंतों के पंचकल्याणकों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस लघु पुस्तिका के अंत में पूज्य चन्दनामती माताजी द्वारा लिखित सोलहकारण पूजा (हिन्दी) भी समाहित की गयी है। भावों की अभिव्यक्ति एवं सुन्दर तर्ज से युक्त यह पूजा भी अत्यन्त मनोहारी है। उपरोक्त पूजाओं के समन्वय से यह लघु पुस्तिका (पॉकेट बुक) दशलक्षण पर्व हेतु विशेष रूप से उपयोगी बन गयी है।
सन् २००४ में प्रकाशित ‘भगवान महावीर हिन्दी—अंग्रेजी जैन शब्दकोश’ में ‘संकलन एवं वाचना’ की प्रमुख भूमिका पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी द्वारा निर्वहन की गयी। जैनदर्शन के विशिष्ट शब्दों सहित लगभग १५००० शब्दों को अंग्रेजी एवं हिन्दी में व्याख्यायित करने वाला यह शब्दकोश अत्यन्त परिश्रमपूर्वक तैयार किया गया। भगवान महावीर जन्मभूमि—कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार में शब्दकोश हेतु संकलित शब्दों की वाचना के समय पूज्य माताजी द्वारा किया गया अर्हिनश कार्य आज भी आँखों के समक्ष सजीव हो जाता है।
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में बैठकर अनेकानेक शब्दों की आगमोक्त व्याख्या, पुन: अंग्रेजी रूपान्तरण इत्यादि का कार्य पूज्य छोटी माताजी एवं शब्दकोश टीम द्वारा अत्यन्त परिश्रम एवं लगन के साथ सम्पन्न किया जाता था और इसी परिश्रम के फलस्वरूप शब्दकोश रूपी निधि जैन समाज को प्राप्त हुई।
जैनदर्शन के ग्रंथों के स्वाध्याय एवं अंग्रेजी अनुवाद हेतु इस शब्दकोश का लाभ लिया जा सकता है। साथ ही, जैन पारिभाषिक शब्दों की आगमोक्त व्याख्या हिन्दी के साथ—साथ अंग्रेजी भाषा में जानने हेतु इस शब्दकोश का प्रयोग विशेष उपयोगी है।
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा चारों अनुयोगों के आधारभूत तथ्यों से समन्वित जैन भारती ग्रंथ का अंग्रेजी संस्करण सन् २००७ में प्रकाशित किया गया।
प्रकाशन से पूर्व डॉ. एन. एल. जैन, रीवा (म. प्र.) द्वारा अनुवादित इस ग्रंथ की वाचना में पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी ने ‘वाचना प्रमुख एवं सम्पादकीय मार्गदर्शन’ के रूप में प्रमुख भूमिका का निष्पादन किया।
डॉ. जैन द्वारा अनुवादित सामग्री की वाचना जब प्रारम्भ की गयी, तब ज्ञात हुआ कि Proper Nouns का भी अंग्रेजी रूपान्तरण कर दिया गया है यथा—‘चन्द्रनखा’ नाम को Moon shaped nails, ‘जयधवला’ को Victorious Luminous इत्यादि; यह देखकर सम्पूर्ण ग्रंथ के सम्पादन की आवश्यकता अनुभव की गयी, अत: पूज्य चन्दनामती माताजी के मार्गदर्शन में ग्रंथ की आद्योपान्त वाचना की गयी तथा सभी उचित परिवर्तन करके ही इसका प्रकाशन किया गया।
पूज्य माताजी के अनुशासन एवं विद्वतापूर्ण मार्गदर्शन के द्वारा ही अंग्रेजी संस्करण का वर्तमान रूप सुलभ हो पाया है, इसमें िंकचित् भी संदेह नहीं है। अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत जैनदर्शन के चारों अनुयोगों की सार—सामग्री से समन्वित Jain Bharati (English) ग्रंथ आज के युवा एवं जैनदर्शन के जिज्ञासु वर्ग के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी द्वारा लिखित अंग्रेजी कृतियों की विषय—वस्तु के संक्षिप्त विवरण के प्रस्तुतीकरण को यहाँ समाप्त करते हुए जिनेन्द्र प्रभु से यही मंगल प्रार्थना है कि पूज्य माताजी की प्रखर विद्वता एवं कर्मठता से प्रसवित अंग्रेजी साहित्य भविष्य में भी हमें इसी प्रकार प्राप्त होता रहे तथा आधुनिक पीढ़ी के लिए जिनशासन की प्रभावना में पूज्य माताजी इसी प्रकार संलग्न रहते हुए आत्मकल्याण के भी नित नवीन सोपान आरोहण करती रहें।