परिवार की नैया पार लगानी है, तो बनना ही होगा पतवार,
तूफानों से टकराकर भी, जीवन नैया निश्चित लगेगी पार।
युगराज जैन
बेटी तो वास्तव में बेटी होती है। अपने पापा मम्मी पर बेटियाँ कितना प्यार उढ़ेलती हैं। पापा का, मम्मी का कितना ख्याल रखती हैं। छोटे भाई—बहन को कितना सम्भालती है। बस उसके ख्याल में सिर्फ मेरे पापा, मेरी मम्मी, मेरे भाई, मेरी बहन की दुनिया ही होती है। बेटे बड़े होकर माँ बाप को धोखा दे सकते हैं और दे भी रहे हैं, लेकिन बेटियाँ उम्र के हर मोड़ पर माँ बाप के लिए वरदान साबित होती हैं। पूरे परिवार के लिए बेटियों का त्याग, समर्पण, आत्मीय भाव सबकुछ तो बेजोड़ व अनमोल है। सच कहता हूँ बेटियों का प्यार अमूल्य है। ससुराल जाने की विदाई के क्षण में पूरा घर आँसूओं का सैलाब बहाने लग जाता है। बेटियों के साथ व्यतीत हुआ एक—एक पल परिजनों को आँखों से गंगा जमुना बहाने के लिए विवश कर देता है। सच में बेटी तो बेटी होती है। जिस तरह माँ का प्यार किसी तराजू में नहीं तौला जा सकता, ठीक उसी तरह बेटी का प्यार व दुलार पिता के घर में इस तरह फैला हुआ रहता है कि हर कोई परिजन उसकी उपस्थिति की चाहत रखता है। मैंने उपरोक्त भूमिका बेटी के प्यार के सत्य से साक्षात्कार कराने के लिए रिश्तों की बुनियाद पर एक इमारत खड़ी करने के लिए लिखी है। उपरोक्त सत्य को आप कभी झुठला भी नहीं पायेंगे। लेकिन मेरे इस लेख को लिखने का हेतु तो कुछ और ही है, जिसे पढ़कर शायद आपको आश्चर्य भी होगा। पापा के घर में चिड़िया की तरह फुदकनेवाली, सब पर प्यार लुटाने वाली एक बेटी, अपने माँ—बाप के आँगन में अपने व्यवहार व स्वभाव से सबका दिल जीतने वाली वही बेटी, जब ननद का स्वरूप धारण करती है और ससुराल जाकर भाभी या बहू का रूप धारण कर लेती है व बड़ी होकर सास का रूप धारण कर लेती है तो इन नये रिश्तों की चादर ओढ़कर अपने बेटी के मूल स्वभाव के गुण से विमुख क्यों हो जाती है ? ननद, भाभी, बहू, सास, देवरानी, जेठानी के रिश्तों से बँधकर वह यह क्यों भूल जाती है कि वह वही बेटी है जो पापा को उदास नहीं देख सकती थी, माँ को चिन्तित नहीं देख सकती थी, भाई —बहन के प्यार में पलभर के लिए भी खटास नहीं देख सकती थी। वही बेटी जब ननद, बहू, सास, भाभी, देवरानी के रिश्तों की चादर ओढ़ लेती है, तो वह इतनी खौफनाक स्वरूप व विरोधी प्रवृत्ति क्यों अपना लेती है। जो बेटी अपने वृद्ध माँ—बाप को अपनी स्वयं की शादी के बाद भी खुश रखने की चाहत रहती है। वही बेटी माता पिता समान अपने सास ससुर को वृद्धाश्रम में भेजने के लिए सारे दांव पेंच क्यों खेलना शुरू कर देती है ? या फिर अपने पति से ये कहती है कि मैं तुम्हारे बूढ़े माँ—बाप की सेवा नहीं कर सकती, मैं अब तुम्हारे माँ बाप के साथ एडजस्ट नहीं कर सकती, मुझसे उनकी सेवा नहीं होगी। एक निर्मल, कोमल, करूणामयी स्वभाव वाली बेटी, जो माँ बाप के लिए तो इतना त्याग करने के लिए तैयार रहती है, वही बेटी अपने पति के माँ — बाप को तिरस्कार की नजरों से देखते हुए उनके साथ बुरा व्यवहार करने लग जाती है क्यों ? जो बेटी अपने व्यवहार से अपने पापा के घर में सबका दिल जीत सकती है तो वह ससुराल में सबका दिल क्यों नहीं जीत सकती ? अब बेटी शायद यह सोच रही हो कि मुझे अपने माँ बाप के परिवार जैसा परिवेश नहीं मिला। माँ बाप, भाई—बहन की तरह प्यार करने वाले सास—ससुर, देवर, जेठ नहीं मिले । इसलिए मेरे व्यवहार में परिवर्तन आना स्वभाविक था। अत: हर परिवार को यह सोचना ही चाहिये कि हमें पारिवारिक रिश्तों को सम्मान देते हुए परिवार की खुशियों के लिए त्याग की पटरी पर जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाना चाहिये। चूंकि मकान बनाया जाता है व घर बसाया जाता है। फिर भी मैं अपनी तमाम छोटी प्यारी बहनों से निवेदन करूँगा कि मेरे इस कथन पर विशेष गौर करना तथा जहाँ भी जाओ, जहाँ भी रहो सदैव बेटी बनकर ही रहना। देखना निश्चित ही तुम्हारी जीवन झोली ताउम्र खुशियों से भरी रहेगी।