वृषभो प्रियमित्रश्च, शांतीश: सुमतिर्जिन:।
आदिनाथोऽतिव्यक्तश्च, कलासेनश्च कर्मजित्।।१।।
प्रबुद्धश्च प्रव्रजित:, सुधर्माख्यो जिनेश्वर:।
तमोदीपो व्रजो बुद्ध:, प्रबंधोऽतीतनामभृत्।।२।।
प्रमुखश्च पल्योपमोऽ-प्यकोपो निष्ठितो जिन:।
मृगनाभिश्च देवेन्द्र:, पदस्थ: शिवनायक:।।३।।
विश्वचन्द्र, कपिलश्च, वृषभप्रियतेजसौ।
प्रशमो विषमांगश्च, चारित्रोऽथ प्रभारवि:।।४।।
मुंजकेशो वीतवासा:, सुराधीशो दयेश्वर:।
सहस्रदोर्जिनिंसहो, रैवतनाथबाहुकौ।।५।।
श्रीमाल्ययोगनामा चा-योगीशमदनार्यपि।
आरंभो नेमिनाथश्च, गर्भज्ञातिश्चैकार्जित:।।६।।
रक्तकेशश्चक्रहस्त:, कृतेश: परमेश्वर:।
सुभूतिर्मुक्तिकांतश्च, निकेशिश्च प्रशस्तक:।।७।।
निराहारस्तथामूर्तो, द्विजनाथ: श्रेयोगत:।
अरुजो देवनाथोऽपि, दयाधिक: पुष्पेश्वर:।।८।।
नृनाथ: प्रीतभूतश्च, नागेन्द्रोऽथ तपोऽधिक:।
दशास्यारण्यकौ नाथौ, दशानीकश्च सात्त्विक:।।९।।
पश्चिमधातकीखंडे, भरतेषूद्भवान् जिनान्।
भक्त्या त्रिकालजान् नौमि, मे स्यु: त्रिभुवनश्रियै।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थत्रैकालिकचतुा\वशति-तीर्थंकरेभ्यो नम:।
श्री वृषभनाथ प्रियमित्र शांति, जिनवर सुमती श्री आदिनाथ।
अतिव्यक्त कलासेनाख्य कर्मजित् श्रीप्रबुद्ध प्रव्रजित नाथ।।
सूधर्म जिनेश्वर तमोदीप, व्रज बुद्ध प्रबंध अतीत प्रमुख।
पल्योपम औ अकोप निष्ठित, मृगनाभि औ देवेन्द्र स्वमुख।।१।।
श्रीजिन पदस्थ शिवनाथ कहे, ये भूतकाल के तीर्थंकर।
पश्चिमधातकि भरतोद्भव ये, भव-भव में होवें मंगलकर।।
श्री विश्वचंद्र कपिलाख्य वृषभ, प्रियतेज प्रशम विषमांगनाथ।
चारित्र प्रभादित्याख्य तथा, श्री मुंजकेश जिन वीतवास।।२।।
देवाधिप दयानाथ जिनवर, श्री सहस्रभुज जिनसिंह देव।
रैवतपति बाहु श्रीमाली रु अयोग अयोगीनाथ देव।।
श्री कामरिपू आरंभ नेमिजिन गर्भज्ञाति एकार्जित हैं।
ये वर्तमान तीर्थंकर सब, सुर असुर मनुजगण अर्चित हैं।।३।।
श्री रक्तकेश जिन चक्रहस्त, कृतनाथ सु परमेश्वर जिनवर।
सुमूर्ति मुक्तिकांताख्य निकेशी प्रशस्त निराहार जिनवर।।
श्रीमन् अमूर्त द्विजनाथ श्रेयगत अरुज देवनाथाख्य कहे।
सुदयाधिक पुष्पनाथ जिनवर, नरनाथ प्रतिभूताख्य कहें।।४।।
नागेन्द्र तपोधिक दशआनन, अरण्यक नाथ जिनेश्वर हैं।
दर्शनिक सु सात्विक तीर्थंकर, जिन चौबिस ये प्रीिंतकर हैं।।
पश्चिमधातकि में भरत क्षेत्र, इस जंबूद्वीप भरत सम हैं।
उनके जिन भूत भवद्भावी, उनको मम शिरसा वंदन है।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थत्रैकालिकचतु-ा\वशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।