द्वौ द्वौ मन्दरशैलौ। तत्रापि ते मन्दराः क्व तिष्ठन्ति ?
भरतादिदेशानामतिशयेन मध्यस्थितो विजयः देश इत्यर्थः।
तस्यात्यन्तमध्यप्रदेशे तिष्ठन्ति।।५६३।।
पाँचों मेरुपर्वत कहाँ-कहाँ हैं ?
अग आगे कहा जाने वाला सर्व अर्थ मेरू के आश्रय है अतः सर्वप्रथम मेरुगिरि का प्रतिपादन करते हैं—
गाथार्थ— जम्बूद्वीप में एक मेरुगिरि है। दो द्वीपों में इष्वाकार पर्वतों के द्वारा किए हुए पूर्व-पश्चिम में दो-दो धनुषाकार क्षेत्रों में दो-दो मेरुपर्वत हैं, इन मेरु पर्वतों का अवस्थान उन धनुषाकार क्षेत्रों के ठीक मध्य में स्थित विदेहों के ठीक मध्य में है।।५६३।।
विशेषार्थ — जम्बूद्वीप में एक मेरुगिरि है तथा धातकीखण्ड और पुष्करार्ध द्वीपों में इष्वाकार पर्वतों के द्वारा पूर्व पश्चिम दिशाओं में किए हुए दो-दो धनुषाकार क्षेत्र हैं अर्थात् धातकीखण्ड में दो इष्वाकार पर्वतों ने धनुषाकार दो क्षेत्र बनाये हैं और पुष्करार्ध द्वीप में भी दो इष्वाकार पर्वतों ने धनुषाकार दो क्षेत्र बनाए हैं। इन्हीं चार क्षेत्रों में चार सुमेरुगिरि स्थित हैं। उन क्षेत्रों में भी वे मन्दरगिरि कहाँ अवस्थित हैं ? इष्वाकार पर्वतों के द्वारा बनाए हुए जो भरतैरावतादि क्षेत्र हैं, उनके ठीक मध्य भाग में विदेहक्षेत्रों की अवस्थिति है, विदेहक्षेत्रों के अत्यन्त मध्य में ये चारों सुमेरु पर्वत स्थित हैं।