पांडुकवन में चारों ओर मार्ग एवं अट्टालिकाओं से विशाल और अनेक प्रकार की ध्वजापताकाओं से संयुक्त ऐसी अतिरमणीय दिव्य तटवेदी हैं अर्थात् पांडुकवन के तट पर चारों तरफ परकोटे के समान वेष्टित किये हुए वेदी है उसके गोपुरों पर रत्नमय देवभवन हैं। उस वेदी के मध्य में पर्वत की चूलिका को चारों ओर से वेष्टित किये हुये पांडुक नामक वनखण्ड हैं, इन वनखंडों में कर्पूर, तमाल, ताल, कदली, लवंग, दाडिम, पनस, सप्तच्छद, नील, चंपक, नारंगी, मातुलिंग, पुन्नाग, नाग, कुब्जक, अशोक आदि वृक्ष शोभायमान हैं। इस पाण्डुकवन में चारों दिशाओं में चार चैत्यालय और चारों ही विदिशाओं में चार शिलायें स्थित हैं। इन शिलाओं के नाम क्रम से पांडुकशिला, पाण्डुकम्बला, रक्ताशिला और रक्तवंâबला हैं। इसी प्रकार सौमनस, नंदन व भद्रशाल वन में भी चार दिशाओं में चार-चार चैत्यालय हैं।