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अयोध्या
पार्श्वनाथ पूजा
July 19, 2020
पूजायें
jambudweep
भगवान श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा
अथ स्थापना
(तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..)
पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम०।।
हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं।
हम भक्ति आपकी कर करके, सब दुख संकट को हरते हैं।।
प्रभु ऐसी शक्ती दे दीजे, गुण कीर्तन में मति बनी रहे।।हम०।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथ अष्टक
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों त्रयधार करूँ।
पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूँ।।
भव भव तृषा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मलयागिरि का शीतल चंदन, केशर संग घिसाया है।
प्रभु के चरण कमल में चर्चत, भव संताप मिटाया है।।
तन मन को शीतल कर देती, अर्चा जिन भगवान की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
वंदे जिनवरं-४।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
चिन्मय परमानंद आतमा, नहीं मिला इन्द्रिय सुख में।
प्रभु को अक्षत पुंज चढ़ाते, सौख्य अखंडित हो क्षण में।।
इन्द्र सभी मिल करें वंदना, प्रभु के अक्षयज्ञान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरं-४।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
रतिपति विजयी पार्श्वनाथ को, पुष्प चढ़ाऊँ भक्ती से।
निज आत्मा की सुरभि प्राप्त हो, निजगुण प्रगटे युक्ती से।।
ब्रह्मर्षीसुर स्तुति करते, चिच्चैतन्य महान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मालपुआ रसगुल्ला बरफी, जिनवर निकट चढ़ाते ही।
नाना उदर व्याधि विघटित हो, समरस तृप्ती प्रगटे ही।।
गणधर मुनिवर भी गुण गाते, महिमा जिन भगवान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
केवलज्ञान सूर्य हो भगवन् ! मुझ अज्ञान हटा दीजे।
दीपक से मैं करूँ आरती, ज्ञान ज्योति प्रगटित कीजे।।
चक्रवर्ति भी करें वंदना, अतिशय ज्योतिर्मान की।।
।।जिनकी.।।वंदे जिनवरम्-४।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरभित धूप धूपघट में मैं, खेऊँ सुरभि गगन फैले।
कर्म भस्म हो जाएं शीघ्र ही, जो हैं अशुभ अशुचि मैले।।
सम्यग्दर्शन क्षायिक होवे, मिले राह उत्थान की।।
।।जिनकी.।।बंदे जिनवरम्-४।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
अनंनास मोसम्मी नींबू, सेव संतरा फल ताजे।
प्रभु के सन्मुख अर्पण करते, मिले मोक्षफल भव भाजें।।
जिनवंदन से निजगुण प्रगटे, मिले युक्ति शिवधाम की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
जल गंधादिक अर्घ्य सजाकर, जिनवर चरण चढ़ा करके।
केवल ‘‘ज्ञानमती’’ सुख पाकर, बसूँ मोक्ष में जा करके।।
इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
कनक भृंग में मिष्ट जल, सुरगंगा सम श्वेत।
जिनपद धारा करत ही, भवजल को जल देत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल कमल चंपा सुरभि, पुष्पांजलि विकिरंत।
मिले निजातम संपदा, होवे भव दुःख अंत।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
पंचकल्याणक अर्घ
वंदन शत शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका गर्भ कल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।। पार्श्वनाथ.।।टेक०।।
अश्वसेन पितु वामा माता, तुमको पाकर धन्य हुए।
तिथि वैशाख वदी द्वितीया को, गर्भ बसे जगवंद्य हुए।।
प्रभु का गर्भकल्याणक पूजत, मिले निजातम सार है।। पार्श्वनाथ.।।१।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णाद्वितीयायां श्रीपार्श्वनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।। पार्श्वनाथ.।।
पौष कृष्ण ग्यारस तिथि उत्तम, वाराणसि में जन्म हुआ।
श्री सुमेरु की पांडुशिला पर, इन्द्रों ने जिन न्हवन किया।।
जो ऐसे जिनवर को जजते, हो जाते भव पार हैं।। पार्श्वनाथ.।।२।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका तपकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।। पार्श्वनाथ.।।
पौषवदी ग्यारस जाति स्मृति, से बारह भावन भाया।
विमलाभा पालकि में प्रभु को, बिठा अश्ववन पहुँचाया।।
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी, जजत मिले भव पार है।। पार्श्वनाथ.।।३।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका ज्ञानकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।। पार्श्वनाथ.।।
चैत्रवदी सुचतुर्थी प्रात:, देवदारु तरु के नीचे।
कमठ किया उपसर्ग घोर तब, फणपति पद्मावति पहुँचे।।
जित उपसर्ग केवली प्रभु का, समवसरण हितकार है।। पार्श्वनाथ.।।४।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाचतुर्थ्याम् श्रीपार्श्वनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका मोक्षकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।। पार्श्वनाथ.।।
श्रावण शुक्ल सप्तमी पारस, सम्मेदाचल पर तिष्ठे।
मृत्युजीत शिवकांता पायी, लोकशिखर पर जा तिष्ठे।।
सौ इन्द्रों ने पूजा करके, लिया आत्म सुखसार है।। पार्श्वनाथ.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लासप्तम्यां श्रीपार्श्वनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्णार्घ्य
(दोहा)
पार्श्वनाथ पादाब्ज को, पूजूँ बारम्बार।
पूर्ण अर्घंसे जजत ही, पाऊँ सौख्य अपार।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथपंचकल्याणकाय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-
ॐ हीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय नम:।
जयमाला
(शंभु छंद-तर्ज-चंदन सा वदन……….)
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।
जय जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।टेक.।।
नाना महिपाल तपस्वी बन, पंचाग्नी तप कर रहा जभी।
प्रभु पार्श्वनाथ को देख क्रोधवश, लकड़ी फरसे से काटी।।
तब सर्प युगल उपदेश सुना, मर कर सुर पद को पाये हैं।।जय.।।१।।
यह सर्प सर्पिणी धरणीपति, पद्मावति यक्षी हुए अहो।
नाना मर शंबर ज्योतिष सुर, समकित बिन ऐसी गती अहो।।
नहिं ब्याह किया प्रभु दीक्षा ली, सुर नर पशु भी हर्षाये हैं।।जय.।।२।।
प्रभु अश्वबाग में ध्यान लीन, कमठासुर शंबर आ पहुँचा।
क्रोधित हो सात दिनों तक बहु, उपसर्ग किया पत्थर वर्षा।।
प्रभु स्वात्म ध्यान में अविचल थे, आसन कंपते सुर आये हैं।।जय.।।३।।
धरणेंद्र व पद्मावति ने फण पर, लेकर प्रभु की भक्ती की।
रवि केवलज्ञान उगा तत्क्षण, सुर समवसरण की रचना की।।
अहिच्छत्र नाम से तीर्थ बना, अगणित सुरगण हर्षाए हैं।।जय.।।४।।
यह देख कमठचर शत्रू भी, सम्यक्त्वी बन प्रभु भक्त बने।
मुनिनाथ स्वयंभू आदिक दश, गणधर थे ऋद्धीवंत घने।।
सोलह हजार मुनिराज प्रभू के, चरणों में शिर नाये हैं।।जय.।।५।।
गणिनी सुलोचना प्रमुख आर्यिका, छत्तिस सहस धर्मरत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकायें, त्रय लाख वहाँ जिन भाक्तिक थीं।।
प्रभु सर्प चिन्ह तनु हरित वर्ण, लखकर रवि शशि शर्माये हैं।।जय.।।६।।
नव हाथ तुंग सौ वर्ष आयु, प्रभु उग्र वंश के भास्कर हो।
उपसर्ग जयी संकट मोचन, भक्तों के हित करुणाकर हो।।
प्रभु महा सहिष्णू क्षमासिंधु, हम भक्ती करने आये हैं।।जय.।।७।।
चौंतिस अतिशय के स्वामी हो, वर प्रातिहार्य हैं आठ कहे।
आनन्त्य चतुष्टय गुण छ्यालिस, फिर भी सब गुण आनन्त्य कहे।।
बस केवल ‘ज्ञानमती’ हेतू, प्रभु तुम गुण गाने आये हैं।।
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।।जय.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
दोहा
जो पूजें नित भक्ति से, पार्श्वनाथ पदपद्म।
शक्ति मिले सर्वंसहा, होवे परमानंद।।१।।
।। इत्याशीर्वाद:। पुष्पांजलि: ।।
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