परमपूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने अनेक तीर्थों की वंदना करके अपने जीवन को धन्य किया है। हस्तिनापुर नगरी भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ तीन तीर्थंकरों की जन्मभूमि है। इससे पूर्व युग की आदि में सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव को राजा श्रेयांस ने नवधाभक्तिपूर्वक पड़गाहन कर इक्षुरस का आहार दिया था। तभी से अक्षयतृतीया पर्व मनाया जाता है। ऐसी अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ इस पावन तीर्थ से सम्बद्ध हैं। रक्षाबंधन पर्व, महाभारत का युद्ध, रोहिणी व्रत की कथा, मनोवती की दर्शन कथा आदि अनेक पौराणिक कथानक इस धरती से ही प्रसिद्ध हुए हैं। प्राचीन समय से यहाँ भगवान शांतिनाथ का मंदिर निर्मित था किन्तु जब पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से यहाँ जम्बूद्वीप की रचना का निर्माण हुआ, तब से वहाँ की काया ही पलट गई और विश्व के कोने-कोने में हस्तिनापुर का नाम प्रचलित हो गया। पूज्य अभयमती माताजी ने अपनी लेखनी से इस पुस्तक के माध्यम से यहाँ का प्राचीन इतिहास लिखा है। साथ ही हस्तिनापुर तीर्थ की पूजा, यहाँ की घटनाओं से संबंधित रक्षाबंधन पूजा, विष्णुकुमार महामुनि पूजा, पंचमेरु पूजा, नंदीश्वर पूजा, समवसरण पूजा आदि को लिखकर तीर्थ के प्रति अपने भक्ति सुमन अर्पित किये हैं। भगवान शांतिनाथ चालीसा, भजन, आरती भी प्रकाशित हैं। इस पुस्तक के द्वारा तीर्थ की सभी प्राचीन घटनाओं से परिचित हों यही उद्देश्य लेकर पूज्य अभयमती माताजी ने यह पुस्तक पाठकों तक पहुँचाई है। भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ तीर्थंकरत्रय भगवान हमें शांति प्रदान करें, यही मंगल भावना है।