तर्ज- जैनधर्म के हीरे मोती ……………।
कंचन का इक दीप सजाकर, भक्तिभाव से लाए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं ।।टेक.।।
नगर सनावद धन्य हुआ जब, जन्म लिया था नगरी में।
पिता अमोलक रूपा माता, धन्य हुए तुमको पाके।।
मध्यप्रदेश के इस गौरव के, चरणों में सिर नाए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।१।।
लघपुवय में ही घर में रहकर, ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया।
ज्ञानमती माता ने लख, तव प्रतिभा गृह से विरत किया।।
मिला गुरु सत्संग सुवासित जीवन के क्षण आए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।२।।
गुरु के संघ रह ज्ञान, ध्यान, अध्ययन और कई कार्य किए।
हुआ भ्रमण जब ज्ञानज्योति का, भारत यात्रा हेतु चले।।
अलख जगाया जन-जन में, हर मन नव दीप जलाए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।३।।
ज्ञानमती माताजी ने जब जम्बूद्वीप योजना दी।
कृतसंकल्प हुए तुम फिर, योजना मूर्त हो चमक उठी।।
भारत की अद्भुत रचना, उस जम्बूद्वीप को ध्याए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।४।।
विमलसिंधु से सन् ८७, में क्षुल्लक दीक्षा पाई।
पीठाधीश की पदवी भी फिर, मोक्षसप्तमी दिन पाई।।
धर्मदिवाकर, क्षुल्लकरत्न की शरण में आए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।५।।
जब तक धरती, अम्बर, तारे, गंगा यमुना में पानी।
युग-युग तक सब गाऐंगे, तेरी भक्ती की वाणी।।
‘इन्दु’ तुम्हारे सम गुण पाने, हेतू हम सब ध्याए हैं।
क्षुल्लक मोतीसागर जी की आरति करने आए हैं।।६।।