दोण्हं गिरिरायाजणं दोण्हं इसुगारणामसेलाणं।
सामलितरूण दोण्हं दोण्हं वरपउमरुक्खाणं१।।७५।।
(तत्त्वार्थवार्तिक ग्रंथ से)
सूत्र-पुष्करार्धे च ।।३४।
यत्र जम्बूवृक्षस्तत्र पुष्करं सपरिवारं वेदितव्यम्। तन्निवासी द्वीपाधिपतिः, तत एव तस्य द्वीपस्य नाम रूढं पुष्करद्वीप इति।
पुष्करवरद्वीप सम्बन्धी दो मेरु, दो इष्वाकार नामक शैल, दो शाल्मली वृक्ष, दो श्रेष्ठ पद्म (पुष्कर) वृक्ष हैं।।७५।।
(तत्त्वार्थवार्तिक ग्रंथ से)
सूत्रार्थ—आधे पुष्करद्वीप में भी भरतादिक्षेत्र एवं हिमवन् आदि पर्वत दो-दो हैं।।३४।।
जम्बूद्वीप में जिस प्रकार जम्बूवृक्ष हैं—उसी प्रकार परिवार, ऊँचाई आदि वाला पुष्करार्ध में पुष्कर नामक वृक्ष है। उस वृक्ष पर पुष्करद्वीप का अधिपति देव रहता है। पुष्करवृक्ष की अपेक्षा या रूढ़ि से इस द्वीप को पुष्कर कहते हैं।।५।।