वायव्य दिशा में श्री भद्रा, श्री कांता, श्री महिता और श्री निलया ये चार पुष्करिणी पूर्वोक्त वर्णन से युक्त हैंं। इनके मध्य के प्रासादों पर चंवर छत्रादि से युक्त पूर्वोक्त वैभव से युक्त ईशान इंद्र विनोद से क्रीड़ा करता है।
ईशान दिशा में नलिना, नलिनगुल्मा, कुमुदा और कुमुद्रप्रभा ये चार वापिकायें हैं और उनके मध्य में प्रासाद हैं। उस उत्तम भवन में ईशान इंद्र-सुख से क्रीड़ा करता है। आग्नेय एवं नैऋत्य दिशा की वापियों के भवनों में सौधर्म इंद्र एवं वायव्य और ईशान दिशा की पुष्करिणियों के भवनों में ईशान इंद्र का प्रभुत्व समझना चाहिए।