Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
पूज्य श्री ज्ञानमती स्तुति अष्टक!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
पूज्य श्री ज्ञानमती स्तुति अष्टक
(गीता छंद)
(१)
जो जैन आगम धर्म सिंधू, को मथ अमृत पिया,
ज्ञान निर्झर को बहाकर, भव्य जन का हित किया।
वे ज्ञान लक्ष्मी सुख प्रदाता, तीन जग में पूज्य हैं,
है कोटि वंदन मात पद में, वे भवोदधि तीर हैं।।
(२)
हो शुद्ध योगी, बुद्ध योगी, ज्ञान योगी साधिका,
त्रय रत्न धारक महायोगी, धर्म जिन आराधिका।
हो बाल योगी कांतिधारी, धर्मध्वज वरवीर हैं,
तव पद युगल में कोटि वंदन, परमगुण गंभीर हैं।।
(३)
निज तेज से सब तेजवंतों को लज्जित कर दिया,
नव नव सृजन कर ग्रंथ रुचिकर, श्रुत जलधि को भर दिया।
तीर्थंकरों के तीर्थ को, विकसित किया भरपूर है,
है कोटि वंदन मातपद में, वे भवोदधि तीर हैं।।
(४)
जैन वृष भूगोल जो, जग को बताया आपने,
ग्रंथ रचकर ढाई शत, इतिहास बनाया आपने।
चारित्र की हो चन्द्रिका, गणिनीप्रमुख श्रुत सूर्य हो,
चरणाब्ज में हो कोटि वंदन, धर्मरथ आरुढ़ हो।।
(५)
आर्यिकाओं की शिरोमणि, ब्राह्मी सुंदरी, सदृश,
सबसे पुनीता, आप गीता, सर्वमीता, हो सुश्रुत।
हे भारती! जन तारती, तव आरती हम कर रहे,
हो कोटि वंदन पद कमल में, सिंधु भव का तिर रहे।।
(६)
आप कमला अमल विमला, जिन भक्ति की तरंगिणी,
पाप विफला पुण्य सुफला, अध्यात्म रस की गंगिणी।
अकथ महिमा, अथक गरिमा, धर्मरथ की धारिणी,
हो कोटि वंदन चरण चंदन, धर्म विरोध निवारिणी।
(७)
सम्यक्त्व के जो अंग आठों, आप में वे राजते,
ज्ञान सम्यक आठ विध आप में ही साजते।
चारित्र सम्यक् देह धारी, आप गुण उत्तम कथा,
इस हेतु कोटि वंदना, चरणारविंदों में तथा।।
(८)
राह जो अत्यंत दुर्गम, आप हंस उन पर चलीं,
देश धर्म समाज को ले साथ, शिवपथ पर चलीं।
राह भूलों को दिखाई, कार्य सब ऐसा किया,
कर सका ना कोई नर, चरण में वंदन किया।।
(९)
है कथन करने को बहुत, पर शक्ति इतनी है नहीं,
सूर्य को जुगनू दिखाना, जलधि कर से नापना बस है, यही।
अतएव स्तुति अलम करता, वंदामि कोटी बार हो,
प्रवीन का तव चरण में, प्रणाम मां स्वीकार हो।।
इति स्तुति अष्टक
Previous post
तत्त्वार्थसूत्र भजन प्रथम अध्याय!
Next post
जिसके स्मरण से पाप कटे, ऐसी वात्सल्यमयी माता!
error:
Content is protected !!