आजकल लोगों की दिनचर्या पहले की तुलना में काफी बदल गई है। बच्चे दौड़ने , भागने की गतिविधियाँ कम करते हैं और दिन भर टेलीविजन की स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं । इसके अलावा जंक फूड खाने की आदत, मैदे से बनी चीजों का सेवन और उनमें वसा व शुगर की मात्रा ज्यादा होने के कारण लोगों में डायबिटीज होने के खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। परिवार में यदि कोई डायबिटीज का मरीज हो या किसी को बार—बार प्यास लगती हो, पाँव में सूजन हो , चोट लगने या घाव की स्थिति में घाव जल्दी से न भरा हो तो सभी लक्षण शुगर के हो सकते हैं। अगर ऐसे लक्षण दिखें तो बेहतर यही है कि अपने रक्त की जाँच करा लें। साफ्टवेयर इंजीनियर नितिन बावेजा को लंबे अरसे से कंप्यूटर पर काम करने के दौरान दिक्कत आती है। उन्होंने जब अपने घटते हुए वजन को देखते हुए डॉक्टरों से अपनी जाँच कराई तो टेस्ट में डायबिटीज पॉजिटिव आया। डायबिटीज के कारण उन्हें आँखों से धुंधला दिखाई देने लगा था। आँखों से अगर धुंधला दिखाई दे तो यह डायबिटीज के लक्षण होते हैं। स्थिति को अगर समय रहते काबू न किया जाए तो इससे अंधापन भी हो सकता है। डायबिटीज केयर नामक जर्नल में छपे एक रिसर्च के अनुसार दक्षिण एशिया में ४५ प्रतिशत डायबिटीज के रोगियों को आंखों से संबंधित परेशानी होती है। डायबिटीज का आंखों के रेटिना पर खराब असर होता है। आंखों का इमेज बनाने वाला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस बीमारी को डायबिटिक रेटिनोपैथी कहा जाता है। जिसमें आँखों के रेटिना को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियाँ प्रभावित होती हैं। इसके चलते खून के प्रवाह में रूकावट आ जाती है। जिस कारण रेटिना से होकर गुजरने वाली ये धमनियाँ आँखों में छवि नहीं बना पाती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इनमें ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती। रक्त में शुगर के बढ़ते दबाव के कारण रेटिना की कोशिकाओं को रक्त की अपूर्ति नहीं हो पाती जिसके कारण रक्त की कोशिकाओं में कमजोरी आ जाती है या उनसे रक्त प्रवाहित नहीं हो पाता, जिससे नजर कमजोर हो जाती है । इसके कारण ग्लूकोमा (काला मोतिया) और कैट्रैक्ट (मोतिया बिंद) हो सकता है ।
स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिऐ जरूरी है। ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखा जाए क्योंकि उच्च रक्त दवाब से आंखों की रोशनी भी जा सकती है। डायबिटीज से पूरे शरीर की कोशिकाओं पर बुरा असर पड़ता है। डायबिटीज का असर पाचन तंत्र, दिल और जननांगों के अलावा शरीर के हर हिस्से पर हो सकता है। उच्च रक्तचाप से धमनियों पर बुरा असर होता है। जिसके कारण शरीर के विभिन्न अंगों की भोजन द्वारा पोषण और ऑक्सीजन की आपूर्ति सही प्रकार से नहीं हो पाती। कुछ लोगों में रक्त कोशिकाओं को होने वाली हानि का पता जल्दी नहीं चलता। क्योंकि यह अपना असर इतना धीरे—धीरे दिखाती हैं कि उसका पता लगा पाना आसान नहीं होता। मांसपेशियों में होने वाले दर्द, हाथ पैरों में जकड़ने, ऐंठन को लोग ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। डायबिटीज का प्रभाव हड्डियों और जोड़ों पर भी पड़ता है। जिससे ऑस्टोपोरिसिस (हड्डियों का भुरबुरापन) और ऑर्थोराइटिस जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने का असर टांगों और पैरों पर भी पड़ता है। स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर रक्त प्रवाह में मंदता आ जाती है। यदि तंत्रिका नष्ट हो जाए तो टांगों ओर पाँव में दर्द, गर्मी और सर्दी का अहसास होना बंद हो जाता है। पाँव में छोटा—सा भी घाव बड़ा रूप ले लेता है। क्योंकि उसका अहसास हमें महसूस नहीं होता । खुला हुआ यह घाव एक बड़े संक्रमण का भी कारण बन सकता है। हर डायबिटिज व्यक्ति के पैर खराब होने के खतरे सबसे ज्यादा होते हैं। टांगों और पैरों में रक्त प्रवाह के बाधित होने के कारण इन्फेक्शन हो जाता है जो जल्दी सही नहीं होता। धूम्र पान करने वालों को और भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह रक्त के प्रवाह को ओर ज्यादा बाधित कर देती है। रक्त में ग्लूकोज के स्तर को अगर नियंत्रित न किया जाए तो स्थिति पर काबू पाना आसान नहीं होता। इससे बचाव के लिए रख रखाव से संबंधित कुछ उपाय किए जाने चाहिए। पाँव को नियमित गरम पानी से धोएं , पाँव में यदि कोई छोटा सा भी घाव हो तो अनदेखी न करें। पाँव की सूजन पर ध्यान दें। पाँव के नाखून काटकर रखें और घर में भी पाँव को चोट न लगने से बचाने के लिए जुराबें और जूते पहन कर रखें साथ ही पाँव को नियमित चैकअप कराएं। डायबिटीज का त्वचा पर नकारात्मक असर होता है। रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। जिसके कारण त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है।
जिनमें बैक्टीरिया के संक्रमण के खतरे भी बढ़ जाते हैं़, जिसके कारण टांगों, कोहनियों और शरीर के दूसरे हिस्से के जोड़ों में रूखापन आ जाता है। तंत्रिका तंत्र में आने वाली गड़बड़ियों से शरीर में पसीना बनाने वाली ग्रंथियों के कार्य में बाधा आ जाती है जिसके कारण त्वचा में रूखा पन आ जाता है । जिसके कारण पाँव और टांगों में पसीने की मात्रा कम होने लगती है और त्वचा रूखी व बेजान हो जाती है। त्वचा रोग विशेषज्ञ इसके लिए लोशन या माइस्वराइजर लगाने की सलाह देते हैं। दिन में पर्याप्त पानी पीने और सूती कपड़े पहनने की सलाह देते हैं ताकि शरीर की हवा की आवाजाही आसान हो सके।