हर कोई अपने सुन्दर भवन में सुखी रहना चाहता है। इसके लिये वह साज सज्जा भी अनेक प्रकार से करता है किन्तु जब वह अपने जीवन में सब-कुछ ठीक-ठाक करने के बाद अशांति, अपयश, धन एवं जन हानि देखता है तो वह वास्तु का चिंतन करता है कि कहीं गलत निर्माण तो नहीं हुआ है” आज का मनुष्य दो सबसे बड़ी गलती करता जा रहा है और दो ही बातें उसके जीवन को देर-सबेर बर्बाद कर रही हैं, यह दोनों ही वह सुधार ले तो देर-सबेर आबाद, खुशहाल, यशस्वी बन सकते हैं।
पहली
सूर्य निकलने से पहले बिस्तर से उठ जाना चाहिये। सूर्य निकलने से पहले नहीं उठने से अब प्रत्येक व्यक्ति की आंखों में चश्मा लग रहा है। मैं कहता हूँ कि जल्दी चश्मा लगने व अंधेपन का कारण सूर्य के बाद उठना ही है। इससे जल्दी चश्मा ही नहीं, व्यक्ति आलसी, हड्डी कमजोर, क्रोधी, शरीर में खून की कमी, धनहीन, नि:संतान, (नपुंसक) तक हो रहा है।
भवन बनाते समय पूर्व और उत्तर दिशा खुली छोड़ना चाहिये। मैं कहता हूँ मेरा वास्तु इन दो बातों पर ही टिका है, भवन में यदि पूर्व दिशा खुली होगी तो प्रात: सूर्य की किरणे, ठंडी हवा आपके मकान में प्रवेश करेगी, सूर्य का प्रकाश स्वयं आप को जल्दी उठने को विवश करेगा” आप जल्दी उठेंगे तो जल्दी सोना पड़ेगा, आपकी पूरी दिनचर्या नियमित बनी रहेगी। पूर्व में भवन में खुलापन, खिड़कियाँ अन्दर भवन में प्रकाश आने देंगी। आपको सूर्य के प्रात: दर्शन अपने आप ही हो जायेंगे। आप स्नान करके काम के लिये बाहर निकलोगे सूर्य प्रकाश आपसे कह रहा होगा तुम्हारा व्यापार, तुम्हारा जीवन चढ़ते सूर्य की तरह प्रकाशित बना रहेगा। मकान में चाहे अन्य दोष हों परन्तु यदि पूर्व-उत्तर में अधिक खुलापन व खिडकियाँ हैं तो अन्य दोषों का समापन ७५ प्रतिशत स्वत: ही हो जायेगा। मैं कहता हूँ कि जापान के निवासी सर्वप्रथम सूर्य के दर्शन करते हैं इसलिये वह विश्व में अपने प्रभाव को विशेष बनाते हैं, उन्होंने पूर्व में खुलेपन और सूर्य को विशेष स्थान दिया है। भवन में पूर्वी भाग अन्य दिशाओं से अधिक खाली होना चाहिये। यह धन जन वृद्धि तो करता ही है पुत्रों को प्रसिद्ध और स्वस्थता का कारक भी है। भवन का ढाल भी पूर्व और उत्तर दिशा में होना चाहिये” अन्दर के कमरों के ढाल, आँगन आदि पूर्व दिशा में होकर बाहर पानी निकालना चाहिये, छतों का पानी वर्षा में पूर्व दिशा में ढलान देकर छतें बनवाना चाहिये। छतों पर मुंडेर (चारों तरफ दिवार) दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोनों दिशाओं में भारी और पूर्व की दीवार से ऊँची होना चाहिये। भवन के मुख्य द्वार के साथ-साथ अन्य कमरों के द्वार, खिड़की जहाँ तक हो पूर्व दिशा में ही होना चाहिये। दूसरी मंजिल पर या अन्य मंजिलों पर भी पहले दक्षिण-पश्चिम दिशा में कमरे बनवायें, पूर्व और उत्तर खाली रखें।
क्या हानि हो सकती है पूर्व में द्वार /खालीपन/खिडकियां/ ढलान/ पानी का निकास न होने से ? बेहद अशुभ फल, धन हानि , पुत्र संतान की कमी, शीध्र अंधापन, हड्डी रोग, मन्द बुद्धि संतान, व्यापार हानि, घर में क्लेश, भय चोरी कैसे दूर करें ? यदि आप पहले से निवास कर रहें हैं तो दक्षिण पश्चिम की दीवार पूर्व से ऊँची व भारी कर लें, टी.वी का एंटीना या इसी प्रकार की छड़ दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) कोण पर लगा दें। कमरे के अन्दर पूर्व और उत्तर दिशा में हल्का सामान रखें । यदि पूर्व दिशा में मुख्य द्वार नहीं है तब दरवाजे पर गुलाबी /लाल पर्दा लगाकर रखें। गेट पर लाल पेन्ट करायें, सूर्य का चित्र बाहर की तरफ बना दें या बना लगा दें। यदि आपने अपने मकान में किराये पर कमरे दिये हैं तो दक्षिण-पश्चिम के किराये पर दें, पूर्व उत्तर वालों में आप निवास करें।