ईख को गन्ना भी कहा जाता है।इसमे विटामिन बी और सी मिलता है। इसके रस से चीनी,गुड़ और राब बनाया जाता है। यह अनेकों किस्मों में उत्पन्न होता है—काला, भूरा, लाल, सफेद इत्यादि होता है। लाल ईख का रस अधिक मीठा होता है। सफेद ईख की अपेक्षा काली ईख को अधिक हितकारी व लाभदायक माना जाता है। इसके मूल में अधिक मधुर, मध्य भाग में मधुर और आगे (चोटी) पर और गांठों में खारा रस होता है। कच्ची ईख कफ,मेद व प्रमेह उत्पन्न करने वाली होती है। मध्यम ईख वायुनाशक, मधुर, थोड़ा तीक्ष्ण और पित्तनाशक होती है। जरठ ईख रक्त पित्त व क्षय को दूर करने वाली और बल — वीर्यवर्धक होती है। सबसे पुरानी ईख बल वीर्यवर्धक, रक्तपित्त और क्षय रोग नष्ट करने वाली होती है। ईख को रात में खुली जगह अथवा छत पर रखकर सुबह दांतों द्वारा चूसने से पीलिया रोग चार दिनों में ही लाभ होना प्रारंभ हो जाता है। गर्मी के दिनों में इसके रस में नमक और नींबू का रस मिलाकर ठंड़े के रूप में पीने से शरीर को पोष्टिकता प्रदान होती है। यह सर्वोत्तम पेय है। मूत्रावरोध को दूर कर देता है। दांतो के द्वारा इसको चूसने से सूखी खांसी, दमा, यक्ष्मा , कब्ज, दस्त, पेशाब, छाती की जलन, पसली का दर्द, तिल्ली, जिगर की सूजन, फैफड़ों में पुराने चिपके हुए कफ को बाहर निकालने वाली, रक्त—पित्त, पथरी, शरीर की थकावट, हाथ—पैर के तलुओं, आखों व पूरे शरीर में होने वाली जलन आदि रोगों को ठीक कर देता है। पीलिया रोग के लिए इसका रस रामबाण है। इसे लेने से पीलिया रोगी को बहुतायत से पेशाब होता है और पीलिया रोग को शीघ्र नष्ट कर देता है।
स्त्री के स्तन में दूध कम आता हो तो स्त्री अपनी रूची के अनुसार ईख को दांतों से चूसकर रस पीने से दूध अधिक आने लगता है। ईख के रस में अनार का रस, आंवले का रस मिलाकर पीने से पाण्डुरोग को दूर करता है, रक्त और शरीर की वृद्धि को बढ़ाता है। बाजार में बिकने वाले ईख का रस यंत्र से पेरकर, रस निकालते हैं। ऐसे रस में मूल, अग्रभाग, जीव—जन्तु और गांठो के भी साथ—साथ यंत्र में पिस जाने से मैलयुक्त हो जाता है। ज्यादा समय तक पड़ा रहने के कारण विक्रत बनकर जलन करता है, मल को रोकता है और पचने में भारी होता है। यह रस दाह करने वाला और अफारा करने वाला होता है। प्रतिदिन दोपहर का भोजन करने के बाद ईख को चूसकर सेवन करना चाहिए। मेदवृद्धि और मोटापा—ग्रसित लोगों को जहां समस्त मिठाइयां खाने में नुक्सान करती हैं, उनको भी ईख को चूसकर रस ग्रहण करने से लाभ प्राप्त होता है। ईख का पकाया हुआ रस पीने से भारी, स्निग्ध, अत्यन्त तीक्ष्ण, कफ और वायु को मिटाने वाला, गुल्म (वायु गोला) और अफारा शान्त करने वाला तथा कुछ अंशो में पित्त कारक है। ईख के रस का नस्य लेने से या गुड़ के पानी में सोंठ को घिसकर थोड़े—थोड़े समय के अंतर पर सूंघने से हिचकी रोग बंद हो जाता है। ईख के एक टुकड़े को गर्म राख में दबाकर रख देने के दो घण्टे बाद उसे निकालकर इस रस को चूसने से सूखी खांसी दूर हो जाती है। ईख और द्राक्ष के रस की कुछ बूंदे प्रतिदिन नाक में डालने से नाक से होने वाला रक्तस्राव बंद हो जाता है। ईख का रस ठंडा व मधुर होता है। बुखार, सर्दी, मंदाग्नि, त्वचारोग, मिरोग में और छोटे बच्चों के लिए लाभकारी नहीं होता। जुकाम, खांसी और श्वांस के रोगी को भी अत्यधिक रस का सेवन नहीं करना चाहिए। मधुमेह और बहुमूत्रा के रोगी को भी इसका अधिक प्रयोग करना हानिकारक होता है।