‘प्रत्यक्षं विशदं’ जो विशद-स्पष्ट प्रतिभास वाला ज्ञान है वह प्रत्यक्ष प्रमाण होता है। ‘अक्ष्णेति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष-आत्मा’ अक्ष धातु का अर्थ है व्याप्त होना-जानना, जो व्याप्त होता है जानता है वह अक्ष-आत्मा है। ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम जिसको है अथवा ज्ञानावरण कर्म का क्षय जिसके हो गया है। ऐसी उस आत्मा के प्रति जो नियत-निश्चित है-उस आत्मा से उत्पन्न होता है और पर की अपेक्षा नहीं रखता है वह प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है अर्थात् आत्मा में आवरण कर्म के क्षयोपशम से या क्षय से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह प्रत्यक्ष कहलाता है क्योंकि अविशदस्वरूप-अस्पष्ट प्रतिभास वाला प्रमाण प्रत्यक्ष नहीं हो सकता है अन्यथा अतिप्रसंग दोष आ जावेगा।